दिल्ली से 160 किलोमीटर दूर और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है लीलाधर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली ‘मथुरा’, जो न सिर्फ बृज मंडल का प्रमुख शहर है अपितु अपने आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। इसे भारत की सात पुरानी नगरियों (सप्तपुरियों) में से एक माना जाता है और यह पौराणिक काल से धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक रहा है। और इसी नगरी की गोद मैं बसा हुआ है बृजमण्डल का सबसे दिव्य स्थान वृन्दावन, जो भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा और बृज की लाडली जू श्रीराधारानी जी के अमरप्रेम और भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी बना, यहाँ के कण कण मैं एक आध्यात्मिक चेतना बसती है और यहाँ आने वाले सभी भक्तजनो का मार्गदर्शन करती है
विषय सूची:
बृज मंडल और धार्मिक आस्था
बृज मंडल, उत्तर प्रदेश के मथुरा के आसपास फैला हुआ वो पवित्र तीर्थस्थल है, जो लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और उनके द्वारा की गयी लीलाओं का साक्षी रहा है। इस समस्त क्षेत्र को “बृज भूमि” के नाम से भी जाना जाता है और इसमें मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव, राधाकुंड, दाऊजी आदि प्रमुख स्थान शामिल हैं। यहाँ के क्षेत्रवासियों को ‘बृजवासी’ कहा जाता है। समस्त बृज मंडल 84 कोस मैं फैला हुआ है, जहाँ पग पग मैं भगवान श्रीकृष्ण, जिनको बृजवासी स्नेह से कान्हा या लल्ला कहकर सम्बोधित करते है की लीलाओं के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं। बृज यात्रा का महत्व भक्ति और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। यहाँ की यात्रा करते समय श्रद्धालु विभिन्न कुंडों में स्नान करते हैं, मंदिरों के दर्शन करते हैं। यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके अनोखे प्रेम और लीलाओं की याद दिलाती है। बृज भूमि में भ्रमण करने से मनुष्य को मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।
वृन्दावन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
भगवान कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद ही उनके ऊपर मृत्यु का खतरा मंडराने लगा था। मथुरा का राजा और उनका सगा मामा अत्याचारी कंस उनके पीछे पड़ा था। माना जाता है कि कंस के भय से जब नंदबाबा गोकुल को छोड़कर नंदगाव मैं जा बसे, तब बाल रूप भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ अपनी गायों को चराने निकट यमुना के तराई क्षेत्र मैं आया करते थे। यही पर स्थित था एक मनभावन वन क्षेत्र जो मुख्यतया कदम्ब के पेड़, लता पताओं और तुलसी के वृक्षों से घिरा हुआ था। इसी स्थान को आज लोग वृन्दावन के नाम से जानते हैं, जो “वृंदा” (तुलसी) और “वन” (जंगल) से बना है। यमुनाजी का शुद्ध जल और वृन्दावन का विहंगम दृश्य मानो टकटकी लगाए बस अपने इष्ट की बाल लीलाओं के होने का ही इन्तजार कर रहा हो। यही पर भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया और दिव्या महारास रचाया
यह स्थान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं, राधा कृष्ण के अप्रतिम प्रेम, महारास एवं उनके आध्यात्मिक ज्ञान के कारण सम्पूर्ण विश्व मैं अपना अलग अस्तित्व बनाये हुए है। आइए जानते हैं कि वृन्दावन में आपको क्या देखना चाहिए, ठहरने के क्या स्थान हैं, यहां का प्रसिद्ध खान-पान क्या है और यहाँ से आप क्या खरीद सकते हैं।
वृन्दावन के प्रमुख दर्शनीय स्थल
- बांके बिहारी मंदिर: बांके बिहारी मंदिर वृन्दावन में स्थित सबसे प्रमुख और प्राचीनतम मंदिरों में से एक है तथा वृन्दावन प्रवास के दौरान दर्शन करने वालों के लिए सबसे मुख्य मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी के दर्शन के बिना वृंदावन प्रवास की परिकल्पना भी नहीं की जाती। इस मंदिर का इतिहास संगीत सम्राट तानसेन के गुरु, स्वामी हरिदास से जुड़ा है जो भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे | यहाँ इस मंदिर में भक्तों को राधा कृष्ण के विग्रह में उनके मिले हुए रूप के दर्शन होते हैं जो मान्यतानुसार स्वामी हरिदास को स्वयं श्रीकृष्ण और राधारानी जी ने प्रकट हो कर उन्हें दी थी।
- मदन मोहन मंदिर: मदन मोहन मन्दिर का वृन्दावन के प्राचीतम मंदिरों में से एक है। मान्यता है की इस मन्दिर के विग्रह (मूर्ति) का निर्माण स्वयं भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र वज्रनाभ ने करवाया था। एक समय बाद प्रतिमा खो गयी, फिर 15वीं शताब्दी में कहीं अद्वैत आचार्य जी ने मदन मोहन की मूर्ति की खोज की। इसके बाद उन्होंने विग्रह की पूजा का जिम्मा अपने शिष्य पुरूषोत्तम चौबे को सौंपा, तभी से मदन मोहन विग्रह की पूजा अर्चना नित्य रूप से की जाने लगी।
- श्री राधावल्लभ मंदिर: बांकेबिहारी मंदिर से कुछ ही दूर स्थित श्री राधावल्लभ मंदिर की स्थापना श्री हरिवंश जी ने की थी। श्री राधावल्लभ मंदिर पारंपरिक, उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला को प्रदर्शित करता है और जब औरंगजेब ने सभी मंदिरों को तबाह करने का आदेश दिया तब मंदिर के श्री विग्रह को रातों रात राजस्थान के भरतपुर जिले के कामवन में स्थानान्तरण किया गया। जब स्थिति सामान्य होती तो वापस से श्री विग्रह को वृन्दावन लेकर पुनः स्थापित किया गया।
- निधिवन मंदिर: इस मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता, जहाँ की मान्यता है कि आज भी भगवान श्रीकृष्ण अपनी सखियों के साथ रासलीला करने आते हैं। निधिवन में स्थित रंग महल में प्रतिदिन श्रीकृष्ण के द्वारा राधारानी जी का श्रृंगार होता है और मंदिर के कपाट को तालों से बंद किये जाने पर भी रखे गये श्रृंगार की सामग्री और दातुन, पान इत्यादि किसी के उपयोग किये जाने के प्रमाण मिलते हैं।
- इस्कॉन मंदिर: कृष्ण भक्तों में इस्कॉन मंदिर एक बड़ा आस्था का केंद्र है, इस मंदिर को चैतन्य महाप्रभु ने 1975 में बनवाया था। कृष्णभक्तों मैं खासकर विदेशी अनुयायियों मैं इस मंदिर कि बहुत मान्यता है। माना जाता था कि इस मंदिर को उसी स्थान पर बने गया है जहां कृष्ण बलराम अपनी गांए चराने आया करते थे। इस्कॉन के उपदेश और प्रथाओं को आज से लगभग 550 वर्ष पहले श्री चैतन्य महाप्रभु ने शुरू किया था, इसके बाद पूरे संसार में श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद जी द्वारा किया गया।
- रंगजी मंदिर: रंगजी मंदिर की बनावट द्रविड़ शैली के लिए जानी जाती है, जिसमें एक गोपुरम है जो दक्षिण भारत के मंदिरों की याद दिलाता है। भगवान रंगनाथ के ठीक सामने एक 60 फीट ऊँचा और लगभग 20 फीट भूमि के भीतर धँसा हुआ तांबे का एक ध्वज स्तम्भ बनाया गया। इस मंदिर हर खम्बे पर बहुत ही सूक्ष्म नक्काशी कि गयी है, जिससे इसके वैभव और कारीगरों कि मेहनत का पता चलता है।
- गरुड़ गोविंद मंदिर: गरुड़ गोविंद मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में किया गया था। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर गरुड़ जी और भगवान गोविंद (श्रीकृष्ण) के पवित्र संबंध को प्रदर्शित करता है। गरुड़ जी, जो भगवान विष्णु के वाहन और प्रिय भक्त हैं, यहां भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में समर्पित दिखाई देते हैं। यहाँ गरुड़ जी की विशाल और अद्वितीय मूर्ति, जो भगवान गोविंद की ओर भक्तिभाव से झुकी हुई है।
- पागल बाबा मंदिर: पागल बाबा मंदिर की विशेषता इसका शांतिपूर्ण वातावरण है, जो बगीचों, पेड़ों और भक्तों के ध्यान और प्रार्थना करने के लिए रास्तों से घिरा हुआ है। यह मंदिर वृंदावन के सबसे अद्भुत मंदिरों में से एक है 221 फीट ऊंचा नो मंजिलों वाला यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है।
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- टटिया स्थान: स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़े हुए इस स्थान कि मान्यता है कि आज भी यहाँ कलियुग का प्रवेश नहीं हुआ है। यह स्थान है विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, जो तकनीकी प्रगति से पूरी तरह अछूता है। यहाँ आज भी विधुत अथवा मशीन का कोई प्रयोग नहीं किया जाता, आपको इस स्थान पर पंखा, बल्ब जैसे मामूली साधन भी देखने को नहीं मिलेंगे। वहां आरती के समय बिहारी जी को पंखा भी आज भी पुराने समय के जैसे डोरी की सहायता से करते है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, संत कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है।
- राधा दामोदर मंदिर: वृंदावन के प्राचीनतम और प्रमुख सात गोस्वामी मंदिरों में से एक है यहाँ का राधा दामोदर मंदिर। यहाँ एक शिला है जिसकी मान्यता है कि इसपर स्वयं श्रीकृष्ण के, उनकी बंसी और गाय के पदचिन्ह है। यह शिला स्वयं श्रीकृष्ण ने प्रकट होकर सनातन गोस्वामी जी को दी थी, ताकि वे वृद्धावस्था पुरे गिरिराज पर्वत की परिक्रमा न कर के इसकी परिक्रमा करें कर लें। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार राधा दामोदर मंदिर की चार परिक्रमा गोवर्धन पर्वत की एक परिक्रमा के बराबर होती है।
- माता वैष्णो देवी मंदिर: वृन्दावन में छटीकरा से आगमन करते ही जो सबसे पहला मंदिर दिखाई पड़ता है, वह है माता वैष्णों देवी का मंदिर कटरा स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर से प्रेरणा लेकर बनाया गया है। इस मंदिर में मुख्य मंदिर के साथ 2 गुफाएँ भी हैं जिनमे भक्त माता के नवरूपों के दर्शन करते हैं। साथ ही मंदिर के बाहर दुर्गा माता की विशाल मूर्ति मंदिर के सौंदर्य को कई गुणा बड़ा देती है। यहाँ नवरात्रों मैं भारी संख्या मैं भक्तगण माता के दर्शन हेतु आते हैं।
- प्रियकांत जू मंदिर: श्रीकृष्ण और राधारानी जी के प्रेम को दर्शाता हुआ यह एक अनोखा मंदिर है जिसका निर्माण सन 2009 में हुआ था, जिसे देवकीनंदन ठाकुर ने बनवाया है। मंदिर की बनावट के कमल पुष्प की तरह है जिसकी परिधि तकरीबन 125 फीट की है। यह मंदिर माता वैष्णो देवी मंदिर के बाद आता है और नवनिर्मित होने के कारण, काफी भक्तगण इसको देखने के लिए आते हैं।
- प्रेम मंदिर: वृन्दावन स्थित प्रेम मंदिर नवनिर्मित होने के पश्चात् भी अपनी सुन्दरता और अद्भुत वास्तुकला के लिए काफी प्रसिद्ध है। जगदगुरु कृपालु जी महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के हर स्तम्भ को राधा कृष्ण की अलग अलग लीलयों को दर्शाने के लिए तराशा गया है। साथ ही मंदिर मैं भगवान् श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत उठाये सुंदर झांकी देखने को मिलती है। इस मंदिर में प्रतिदिन रात के समय सुंदर और रंगबिरंगी रौशनी दर्शकों का मन मोह लेती है। यहाँ रात के समय जल प्रदर्शिनी भी होती है जिसके साथ भक्त यहाँ निर्मित कईं झाकियों को भी देखते हैं।
- कालिदह: वृंदावन का एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक स्थल है, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनके असाधारण पराक्रम का साक्षी है। यह स्थान यमुना नदी के किनारे स्थित है और यहां भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन कर यमुना को विषमुक्त किया था। यह घटना श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार अत्यंत महत्वपूर्ण है और भक्तों के बीच गहरी श्रद्धा का विषय है।
- यमुना विहार: यमुना जी, जिसे बृजवासी जमुना मैया के नाम से भी सम्बोधित करते हैं, मथुरा की जीवनरेखा का बहुत ही अभिन्न हिस्सा है, यह मोक्षदायिनी नदी मथुरा-वृंदावन के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। माना जाता है कि यमुना में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है, और मथुरा में आने वाले तीर्थयात्री इस पवित्र नदी में स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। यमुना नदी के किनारे कई प्रसिद्ध घाट स्थित हैं, यहाँ शाम को होने वाली यमुना आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं। साथ ही वो नावों मैं सवार होकर युमना विहार का आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं।
- नीब करौरी बाबा आश्रम: इस जगह पर बाबा नीब करौरी ने 1973 में अपनी देह को त्यागने का फैसला किया था। इस आश्रम के अंदर नीम करोली बाबा/नीब करौरी बाबा का महासमाधि मंदिर है। यह सितंबर में महाराज जी के महासमाधि भंडारे का स्थल है। यहाँ पर राम-सीता-लक्ष्मण-हनुमान मंदिर भी है। और श्रद्धालु बड़ी ही आशा से बाबा नीब करौरी के समाधी स्थल पर उनका आश्रीवाद प्राप्त करने आते हैं।
- चंद्रोदय मंदिर: जल्द ही कृष्णभक्तों को इस्कॉन द्वारा निर्मित और भविष्य मैं विश्व के सबसे ऊँचे मंदिर होने का गौरव हासिल करने वाले चंद्रोदय मंदिर को देखने का सौभाय भी प्राप्त होगा। यह मंदिर आने वाले समय मैं दुबई स्थित बुर्ज खलीफा टावर को भी टक्कर देगा, साथ ही यहाँ से आप ताजमहल को भी देख सकेंगे। इस मंदिर का काम जोरशोर से चल रहा है और वास्तुकला के हिसाब से ये मंदिर आने वाले समय मैं देश विदेश के कृष्णप्रेमियों को अपनी तरफ आकर्षित करेगा।
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इसके अलावा यहाँ और भी छोटे बड़े मंदिर और मठ हैं जो भक्तों मैं काफी लोकप्रिय हैं। साथ ही वृन्दावन की पावन धरा पर अनेकोनेक संत और कथावाचक भी राधा और कृष्णभक्ति मैं लीन भक्तगणों को लुभाते हैं। और हर रोज बड़ी संख्या मैं लोग इनके प्रवचन सुनने या इनके दर्शन हेतु वृंदावन आते हैं. रमाये हुए हैं, जिनमे प्रमुख हैं संत प्रेमानंद जी महाराज, कथावाचक अनिरुद्धाचार्य, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर आदि शामिल हैं.
साथ ही आप वृंदावन के आसपास के क्षेत्रों जैसे मथुरा, गोवर्धन, बरसाना, नंदगाव, गोकुल, महावन,दाऊजी आदि का भ्रमण कर कृष्ण लीलाओं का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
वृन्दावन के प्रमुख उत्सव और त्योहार
मथुरा हो या वृंदावन या फिर बृजमण्डल का कोई भी स्थान, यहाँ पर हिन्दुओं के सभी त्यौहार और उत्सवों को धूमधाम से मानाने की परंपरा रही है, पर श्रीकृष्ण की भक्तिभाव की अधिकता के कारण कुछ त्योहारों पर यहाँ का उल्लास और यहाँ की छठा अलग ही होती है।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है। जन्माष्टमी पर भक्तजन पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात में अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारका, और इस्कॉन मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मंचन किया जाता है।
- राधाष्टमी उत्सव: बृज मैं राधाष्टमी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह राधाजी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इस दिन यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है, और भव्य झांकियां सजाई जाती हैं।
- वृन्दावन की होली: वृन्दावन की होली का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण और उनकी राधा के साथ जुड़े हुए अनेक पौराणिक किस्सों और लीलाओं से जुड़ा हुआ है। मथुरा और वृंदावन में श्रीकृष्ण ने अपनी युवावस्था में राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेली थी। कृष्ण की रासलीला में रंगों से खेलना और प्रेम का आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण भाग था। मथुरा-वृन्दावन में होली का त्योहार कृष्ण और राधा के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें रंगों का महत्व प्रेम और एकता के प्रतीक के रूप में है। वृन्दावन में फूलों की, लड्डुओं और रंगों की होली खेली जाती है, जहाँ स्थानीय लोग और पर्यटक मिलकर गुलाल उड़ा कर एक-दूसरे पर रंग लगाते हैं।
- गोवर्धन पूजा: दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है और इसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने गोकुलवासियों की रक्षा के लिए इंद्र देव के प्रकोप से बचाने हेतु अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करते हैं और अन्नकूट का आयोजन करते हैं।
- यमुना जी का चुनरी मनोरथ: मथुरा, वृंदावन में यमुना जी का चुनरी मनोरथ एक अत्यंत भव्य और श्रद्धापूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। इस विशेष पूजा में भक्तगण यमुना मैया को चुनरी अर्पित करते हैं, जिसमें उनकी श्रद्धा, भक्ति, और कृतज्ञता का भाव होता है। यमुना जी को माता का स्वरूप माना जाता है, और चुनरी चढ़ाकर भक्त उन्हें सम्मान और प्रेम अर्पित करते हैं। चुनरी मनोरथ के समय यमुना का दृश्य अत्यंत मनोहारी और आस्था से भरा होता है। सैकड़ों रंगीन चुनरियाँ यमुना के जल पर बहती हुई एक अलौकिक छटा प्रस्तुत करती हैं। इस आयोजन में दूर-दूर से श्रद्धालु भाग लेने आते हैं और यमुना मैया के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
- वृंदावन परिक्रमा: यह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है, जो वृंदावन नगरी में स्थित विभिन्न धार्मिक स्थलों, मंदिरों और घाटों को नमन करने का अवसर देती है। यह परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में उनके जीवन और लीलाओं से जुड़े स्थलों के दर्शन के लिए की जाती है। वृंदावन परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए भक्ति, पुण्य और आध्यात्मिकता का विशेष अनुभव है, जो उनके जीवन में धार्मिक संतोष और आशीर्वाद लाता है। बृज मै कई प्रचलित परिक्रमा हैं जिनमे भक्तगण समय समय पर भाग लेते हैं, जिसमे मुख्य रूप से बृज चौरासी कोस परिक्रमा, एक वन या तीन वन की परिक्रमा, गोवर्धन की परिक्रमा, बरसाने की परिक्रमा और मथुरा की पंचकोशीय परिक्रमा शामिल हैं।
मथुरा-वृंदावन से खरीदने योग्य वस्तुएं
बृजमण्डल विशेषकर मथुरा और वृंदावन, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और बाल्यकाल की लीला स्थली, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां की कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिन्हें आप खरीद सकते हैं:
- राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ: मथुरा, वृंदावन में भगवान कृष्ण की विविध प्रकार की मूर्तियाँ मिलती हैं। आप लकड़ी, पत्थर या धातु की बनी मूर्तियाँ खरीद सकते हैं। ये मूर्तियाँ घर की पूजा के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
- पेंटिंग और चित्र: मथुरा, वृंदावन की कला में लघु चित्रण का बड़ा महत्व है। यहां के कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स, विशेष रूप से राधा-कृष्ण की लीलाओं पर आधारित, बहुत सुंदर होती हैं। ये कला के प्रेमियों के लिए बेहतरीन उपहार हो सकती हैं।
- ठाकुरजी की पोशाक एवं श्रृंगार: पूरे बृजमण्डल मैं आपको ठाकुरजी (भगवान श्रीकृष्ण) की और राधारानी की खूबसूरत और मनोहारी पोशाकें तथा उनके श्रृंगार के लिए एक से बढ़कर एक वस्तुएं मिल जाएँगी, जिन्हे सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक से शृद्धालु बड़े ही प्रेमपूर्वक ले जाते हैं।
- कंठी-माला और पूजा सामग्री: बृजमण्डल मैं आपको कंठी-माला और पूजा सामग्री भी हर जगह मिल जाएगी। यहाँ की तुलसी माला तो वैष्णवजनों मैं अत्यंत लोकप्रिय है, साथ ही पूजा के लिए विशेष सामग्री भी बृज मैं आने वाले लाखों भक्तजन बड़े चाव से खरीदकर ले जाते हैं।
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वृंदावन के मुख्य स्थानीय व्यंजन?
अब बृजमण्डल की बात हो और खानपान पर चर्चा न की जाये, ये तो असंभव हैं क्योंकि बृज के लोग खानपान के बड़े प्रेमी माने जाते हैं और उस पर भी मिठाइएं के लिए तो हर बृजवासी आपको दीवाना मिलेगा। वृंदावन की यात्रा के दौरान यहां के पारंपरिक व्यंजन और मिठाइयाँ ज़रूर चखनी चाहिए। वैसे तो आपको खाने के लिए पारम्परिक नार्थ इंडियन और साउथ इंडियन भोजन बहुतायत मैं उपलब्ध है, पर जब यहां के स्थानीय भोजन की बात की जाती है तो आप निम्न व्यंजन का स्वाद लेना न भूलें
- मथुरा के पेड़े: बृज मैं आये और पेड़े नहीं खाये तो क्या ही खाया, वैसे तो बृज मैं इतने प्रकार की मिठाइयां मिलती हैं की आप सोच भी नहीं सकते पर इनमे सबसे प्रमुख हैं, मथुरा के पेड़े जो देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर हैं और इनका स्वाद आपको इन्हे भूलने नहीं देगा। तो जब भी बृजमण्डल मैं आएं तो यहाँ के पेड़े खाना और साथ ले जाना कभी न भूलें। वैसे तो श्रद्धालुगण ‘बृजवासी मिठाई वाले’ की मिठाइयां ही खरीदना पसंद करते हैं पर शहर मैं आपको अन्य स्थानों से भी बेहतरीन मिठाइयां खाने को मिलती हैं।
- जलेबी, कचौड़ी और आलू का झोल (सब्जी): यह बृजवासियों का प्रमुख नाश्ता है जिसके बिना बृजवासी दिन की शुरुवात की कल्पना भी नहीं करना चाहेंगे, यह वृंदावन और पूरे बृजमण्डल मैं आपको स्थानीय दुकानों और खाने की जगहों पर बड़ी ही आसानी से मिलता है। गरमागरम कचौड़ी के साथ आलू का झोल (सब्जी) और साथ मैं गरम जलेबी की मिठास का स्वाद आपको हमेशा याद रहेगा। वैसे तो सोशल मीडिया पर मथुरा के रूपा की कचौड़ी फेमस है पर अगर आप अन्य स्थानों से भी कचौड़ी का स्वाद लेंगे तो मजा दोगुना हो जायेगा।
- दही की मीठी लस्सी: जलेबी, कचौड़ी के साथ अगर दही की ठंडी और मीठी लस्सी और पी ली जाये तो मानो सोने पर सुहागा। लस्सी खासतौर पर गर्मियों के दौरान बहुत पसंद की जाती है। यहाँ की मोटी मलाई वाली लस्सी का स्वाद आपको बरसाना और बृजमण्डल की यात्रा के दौरान एक अलग ताजगी का अनुभव देगा।
- कढ़ाई वाला गर्म दूध: शाम को खाना खाने के बाद, मिटटी के कुल्लड़ मैं गर्मागर्म दूध पीने का अपना अलग ही आनंद है, अगर आप बृजमण्डल प्रवास पर हैं तो इसका स्वाद लेना न भूलें। ये दूध आपको गली मोहल्ले के नुक्कड़ की छोटी दुकानों पर बहुतायत मैं मिल जायेगा।
- मक्खन और मिश्री: राधा और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मक्खन और मिश्री का सेवन यहां की धार्मिक यात्रा का एक हिस्सा है। कई मंदिरों के पास यह आपको आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
- मेवा के लड्डू: विभिन्न प्रकार की मेवाओं व देसी घी ने निर्मित ये लड्डू बहुत प्रसिद्ध हैं। इन लड्डुओं का स्वाद बेहद खास होता है और यह यहां की एक विशिष्ट मिठाई है।
- खुरचन: बृज की खुरचन का भी एक अलग ही अंदाज है, दूध की मलाई से बनी केसर-इलाइची युक्त ये मिठाई आपकी स्वाद ग्रंथियों को अलग ही आनंद देगी।
इसके अलावा भी आप बस नाम बताईये और आपकी पसंदीदा मिठाई आपके सामने हाजिर है, क्योंकि बृज मैं आपको बेहतरीन और स्वादिष्ट मिठाइयां बेचनेवाले और खानेवाले दोनों ही बहुतायत मैं मिल जायेंगे।
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यात्रा का सर्वश्रेष्ठ समय
वैसे तो पूरे वर्ष ही आप वृंदावन की यात्रा के लिए आ सकते हैं क्योंकि आध्यात्मिक नगरी होने के कारण यहाँ हर हिन्दू त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, पर अगर आप यहाँ की होली का आनंद लेना चाहते हैं तो मार्च मैं आएं, जब यहां चहुंओर होली की धूम रहती हैं और विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है। और अगर कृष्ण जन्मष्टमी का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अगस्त माह आपके लिए उपर्युक्त है, पर गोवर्धन पूजा का अवसर प्राप्त करने के लिए आपको अक्टूबर या नवंबर मैं आना पड़ेगा। वैसे नवंबर से मार्च के बीच का मौसम अत्यधिक ठंडा रहता है। इस समय आते समय गर्म कपडे लाना न भूलें अन्यथा आपको शीतलहर का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। पूरे साल मैं आप कभी भी आएं, आपको यहाँ आकर आत्मिक और मानसिक शांति का अहसास जरूर मिलेगा और आप अपने को कृष्णरस मैं भीगने से बचा नहीं पाएंगे।
वृंदावन कैसे पहुंचे?
मथुरा भारत के प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है:
- वायु मार्ग: मथुरा का निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो यहाँ से 160 किमी दूर है। वहां से आप टैक्सी या बस के माध्यम से मथुरा-वृंदावन आसानी से पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग: मथुरा रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा है और यहाँ से आपको तकरीबन हर जगह के लिए आने जाने की ट्रेन सुविधा मिल जाएगी। यहाँ से टैक्सी या ऑटो लेकर आसानी से वृंदावन घूम सकते हैं।
- सड़क मार्ग: मथुरा दिल्ली, आगरा, जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों से अच्छी तरह सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप आसानी से अपने निजी वहां से यहाँ पहुँच सकते हैं साथ ही यहाँ नियमित बस सेवा भी उपलब्ध है।
वृंदावन में ठहरने के उत्तम स्थान
वृंदावन में काफी धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं, जो आपके बजट और सुविधा के अनुसार विकल्प प्रदान करते हैं। साथ ही आस-पास स्थित, मथुरा, गोकुल, बरसाना, गोवर्धन आदि में भी अच्छे होटल्स मिल जाते हैं। यहां पर आपको लक्ज़री से लेकर बजट होटल्स, होमस्टे, डोरमेट्री और धर्मशाला तक के कई विकल्प आसानी से मिलेंगे। पर अगर आप किसी त्यौहार पर आने का प्लान बना रहे हैं तो एडवांस बुकिंग करवाना अधिक सुविधाजनक रहेगा।
ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें
- स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें: धार्मिक नगरी होने के कारण यहाँ के लोग रीति-रिवाजों के प्रति बहुत आस्थावान हैं। इसलिए स्थानीय संस्कृति का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
- पर्यावरण की सुरक्षा: यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने के लिए पर्यावरण का ध्यान रखें। प्लास्टिक का उपयोग काम से काम करें करें और कचरा सही स्थान पर फेंकें।
- धैर्य व अनुशासन रखें: धार्मिक स्थलों पर भीड़ हो सकती है। धैर्य व अनुशासन बनाए रखें और सब कुछ आराम से करें।
- स्थानीय लोगों के साथ संवाद करें: उनकी मदद से आप मथुरा के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में जान सकते हैं।
- उचित वस्त्र पहनें: धार्मिक स्थलों पर जाने के दौरान आपको साधारण और पारंपरिक वस्त्र पहनने चाहिए। महिलाओं को साड़ी या सलवार-कुर्ता पहनना उचित होता है, जबकि पुरुषों को कुर्ता या टी-शर्ट और पैंट पहनना चाहिए। इसके लिए आप बाध्य नहीं हैं पर आध्यात्मिक यात्रा के दौरान आपका पहनावा आपके विचारों को निश्चित ही प्रभावित करता है।
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वृंदावन (ब्रजमण्डल) यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह आपको उत्तर प्रदेश की पारंपरिक संस्कृति, बृजमंडल के स्वादिष्ट भोजन और ऐतिहासिक महत्व से परिचित कराती है। यहां की यात्रा करने पर आप भारतीय धर्म और कृष्ण भक्ति के एक अनोखे अनुभव को महसूस करेंगे। यहाँ की पावन रज और आध्यात्मिकता आपको एक अलग ही स्तर पर ले जाएगी, ये यात्रा आपको न सिर्फ भौतिक वरन आत्मिक रूप से भी अध्यात्म से ओतप्रोत कर देगी, जो आपके जीवन मैं यकीनन एक यात्रा एक समृद्ध और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करेगी।
अपने अगले लेख मैं हम आपसे बृज मंडल के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे कि मथुरा, गोवर्धन, बरसाना, नंदगाव, गोकुल, महावन,दाऊजी आदि के बारे शीघ्र ही सम्पूर्ण जानकारी साझा करेंगे।
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