गोवर्धन पर्वत: जहाँ श्रीकृष्ण ने की थी गोकुलवासियों की रक्षा

गोवर्धन पर्वत: जहाँ श्रीकृष्ण ने की थी गोकुलवासियों की रक्षा

बृजमंडल के मुख्य स्थानों की श्रृंखला मैं आज आपको बताएँगे बृज के एक और अति महत्वपूर्ण स्थान “श्री गोवर्धन” के बारे मैं। दिल्ली से 160 किलोमीटर दूर और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है लीलाधर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली ‘मथुरा’ (जो न सिर्फ बृज मंडल का प्रमुख शहर है अपितु अपने आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व के लिए भी जाना जाता है) से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है दिव्य एवं मनोहारी गोवर्धन पर्वत जिसे गिरिराज जी भी कहा जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां गोवर्धन परिक्रमा के लिए आते हैं। आइए, गोवर्धन की यात्रा और इससे जुड़ी जानकारी को विस्तार से समझते हैं।

गोवर्धन का धार्मिक महत्व

गोवर्धन पर्वत की पौराणिक कथा महाभारत और श्रीमद्भागवत पुराण से जुड़ी है। मान्यता है कि जब इंद्रदेव ने गोकुलवासियों को परेशान करने के लिए भयंकर वर्षा की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। तभी से गोवर्धन की पूजा होती है और इसे गिरिराज जी के नाम से पुकारा जाता है। गोवर्धन को भगवान का प्रतीक मानकर श्रद्धालु यहां परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन परिक्रमा का महत्व कार्तिक पूर्णिमा, दिवाली और गोवर्धन पूजा के समय और भी अधिक बढ़ जाता है।

बृज मंडल और धार्मिक आस्था

बृज मंडल, उत्तर प्रदेश के मथुरा के आसपास फैला हुआ वो पवित्र तीर्थस्थल है, जो लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और उनके द्वारा की गयी लीलाओं का साक्षी रहा है। इस समस्त क्षेत्र को “बृज भूमि” के नाम से भी जाना जाता है और इसमें मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव, राधाकुंड, दाऊजी आदि प्रमुख स्थान शामिल हैं। यहाँ के क्षेत्रवासियों को ‘बृजवासी’ कहा जाता है। समस्त बृज मंडल 84 कोस मैं फैला हुआ है, जहाँ पग पग मैं भगवान श्रीकृष्ण, जिनको बृजवासी स्नेह से कान्हा या लल्ला कहकर सम्बोधित करते है की लीलाओं के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं। बृज यात्रा का महत्व भक्ति और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। यहाँ की यात्रा करते समय श्रद्धालु विभिन्न कुंडों में स्नान करते हैं, मंदिरों के दर्शन करते हैं। यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके अनोखे प्रेम और लीलाओं की याद दिलाती है। बृज भूमि में भ्रमण करने से मनुष्य को मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।

गोवर्धन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

भगवान् श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है गोवर्धन। मान्यता है कि जब देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर बहुत ज्यादा घमंड होने गया तो उनके अहंकार को तोड़ने के लिए लीलाधर ने यहाँ पर लीला की। जब एक बार गोकुल में जब सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे। तब भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी में लगे हैं? इस पर मां यशोदा ने देवराज इंद्र की पूजा के बारे मैं बताया कि, कैसे भगवान इंद्र की कृपा से सभी बृजवासियों को अच्छी बारिश मिलती है, जिससे हमारे यहाँ अन्न की पैदावार अच्छी होती है। माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसा है, तब तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि यही हमारी गाय चारा चरने जाती हैं और वहां पर लगे पेड़-पौधों की वजह से ही यहां अच्छी बारिश होती है।

भगवान कृष्ण की ये बात गोकुल वासियों को सही लगी। तब सभी लोग देवराज इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा में लग गए। जब इंद्र देव को इस बात का पता चला कि गोकुल के लोग उनकी जगह गोवर्धन की पूजा कर रहे है तो उनके बड़ा अपमान महसूस हुआ और क्रोध मैं आकर और गोकुलवासियों को सबक सीखने के लिए मूसलाधार बारिश करनी शुरू कर दी। यह बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासियों के घर उजड़ गए। तब भगवान कृष्ण ने सभी को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया, जिसके बाद सभी गोकुलवासियों ने अपने परिवार और गोवंश के साथ इसके नीचे शरण ली।

देवराज इंद्र ने 7 दिनों तक भयंकर बारिश की। लेकिन भगवान कृष्ण के द्वारा उठाए गए गोवर्धन पर्वत के नीचे रहने की वजह से किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ। तब इंद्र देव को इस बात का अहसास हुआ कि वो एक बालक से नहीं अपितु भगवान विष्णु के अवतार से टक्कर ले रहे थे और उनके घमंड को तोड़ने के लिए ही लीलाधर ने ऐसी लीला की। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और वापस अपने लोक मैं चले गए। कहते हैं तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।

गोवर्धन के प्रमुख दर्शनीय स्थल

  • गोवर्धन पर्वत: जब इंद्रदेव ने गोकुलवासियों को परेशान करने के लिए भयंकर वर्षा की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। तब से ही यहाँ 7 कोस की परिक्रमा की जाती है।
  • दानघाटी: यहाँ श्री गिरिराज मुखारबिन्द के सुन्दर दर्शन होते हैं एवं नव-निर्मित मंदिर में अनेक भगवत् विग्रहों के दर्शन हैं। श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ बृजगोपियों को इस घाटी पर रोक कर दूध-दधि का दान लिया करते थे। प्राय: यात्री दानघाटी से ही गोवर्धन परिक्रमा आरंभ करते हैं।
गोवर्धन पर्वत: जहाँ श्रीकृष्ण ने की थी गोकुलवासियों की रक्षा
  • जतीपुरा: इस स्थान पर गिरिराज शिला के नीचे श्रीनाथ जी प्रकट हुए थे। यह स्थल श्रीनाथ जी की विभिन्न लीलाओं को संजोये हुए है। बाद में औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण करने के कारण श्रीनाथ जी को नाथद्वारा ले जाया गया।
  • आन्यौर :  यह वही स्थान है जहाँ नंदबाबा और यशोदा मैया ने सभी बृजवासियों के साथ श्री गिरिराज जी को अनेक प्रकार के पकवान आदि निवेदित किये थे। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गिरिराज स्वरूप में प्रकट होकर समस्त पकवानों का भोग लगा रहे थे। भोग लगाते हुए कह रहे थे और लाओ और लाओ। अतः इस स्थान का नाम आन्यौर पड़ गया।
  • पूँछरी का लौठा : यह गोवर्धन पर्वत की पूँछ कहा जाता है। यहाँ एक लौठा पहलवान का मन्दिर है जिसे श्री नाथ जी का सखा कहते हैं। जब श्रीनाथ जी बृज छोड़कर राजस्थान जाने लगे तो उन्होंने लौठा से भी साथ चलने के लिए कहा। लौठा जी ने कहा, गोपाल मैंने प्रण लिया है कि मैं बृज छोड़ कहीं नहीं जाउंगा और जब तक आप वापस नहीं आओगे मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करुँगा। तो श्री नाथजी ने कहा कि मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के ही तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे।
  • मानसी गंगा: भगवान श्रीकृष्ण के मन से उत्पन्न होने के कारण इस नाम मानसी गंगा पड़ा। मान्यता है कि जब नंदबाबा और अन्य गोकुलवासियों ने गंगा स्नान के लिए प्रस्थान किया तो रात्रि विश्राम के लिए उन्होंने गोवर्धन मैं एक मनोरम स्थान का चयन किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि जब बृजधाम मैं ही समस्त तीर्थों का वास है तो, गंगा स्नान के लिए बृजवासी इतनी दूर क्यों जाएँ। बस इतना सोचने पर ही माँ गंगा ने मानसी गंगा के रूप मैं गोवर्धन की तलहटी मैं अपने को प्रकट कर लिया।
  • गोविंद कुंड: इसी स्थान पर देवराज इन्द्र और भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद हुआ था जहाँ देवराज इन्द्र ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी थी और कामधेनु गाय के दुग्ध गए लीलाधर का अभिषेक कर उनकी पूजा अर्चना की थी।
  • राधा कुंड और श्याम कुंड: कंस के भेजे हुए अरिष्टासुर जो कि बैल का रूप धारण कर बछड़ों के समूह में आ मिला था, का वध करने के पश्चात् जब वो श्रीराधा एवं अन्य सखियों के अनुनय पर उन्होंने शुद्ध होने के लिए श्याम कुंड का निर्माण किया। और राधाजी और अन्य गोपियों के लिए राधा कुंड का निर्माण किया। मान्यता है कि इन कुंडों मैं स्नान करने पर सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
  • हरिदेव मंदिर: मानसी गंगा के दक्षिण किनारे पर स्थित है। ये गिरिराज गोवर्धन के पूजनीय देव हैं। श्री कृष्ण ने एक स्वरुप से गिरिधारी बनकर अपनी हथेली पर अपने दूसरे स्वरुप गिरिराज जी को धारण किया था। और अपने एक स्वरूप से इनकी पूजा की थी।
  • कुसुम सरोवर: मानसी गंगा और राधा कुंड के बीच स्थित यह स्थान भव्य और अप्रतिम है। यहाँ राधाकृष्ण के प्रेम से जुडी कई महत्वपूर्ण कहानियां हैं। यह जाट शासक महाराजा सूरजमल की स्मारक छतरी का स्थान भी है। कुसुम सरोवर में नारद कुंड है, जहाँ नारद द्वारा भक्ति सूत्र छंद लिखे गए थे और पास में श्री राधा वन बिहारी मंदिर भी है।

गोवर्धन के प्रमुख उत्सव और त्योहार

मथुरा हो या गोवर्धन या फिर बृजमण्डल का कोई भी स्थान, यहाँ पर हिन्दुओं के सभी त्यौहार और उत्सवों को धूमधाम से मानाने की परंपरा रही है, पर श्रीकृष्ण की भक्तिभाव की अधिकता के कारण कुछ त्योहारों पर यहाँ का उल्लास और यहाँ की छठा अलग ही होती है।

  • गोवर्धन पूजा: दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है और इसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने गोकुलवासियों की रक्षा के लिए इंद्र देव के प्रकोप से बचाने हेतु अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करते हैं और अन्नकूट का आयोजन करते हैं।
  • गोवर्धन परिक्रमा: यह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है, जो गोवर्धन में स्थित विभिन्न धार्मिक स्थलों, मंदिरों और घाटों को नमन करने का अवसर देती है। यह परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े स्थलों के दर्शन के लिए की जाती है। गोवर्धन परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए भक्ति, पुण्य और आध्यात्मिकता का विशेष अनुभव है, जो उनके जीवन में धार्मिक संतोष और आशीर्वाद लाता है। बृज मै कई प्रचलित परिक्रमा हैं जिनमे भक्तगण समय समय पर भाग लेते हैं, जिसमे मुख्य रूप से बृज चौरासी कोस परिक्रमा, एक वन या तीन वन की परिक्रमा, गोवर्धन की परिक्रमा, बरसाने की परिक्रमा और मथुरा की पंचकोशीय परिक्रमा शामिल हैं।
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  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है। जन्माष्टमी पर भक्तजन पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात में अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, द्वारका, और इस्कॉन मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मंचन किया जाता है।
  • राधाष्टमी उत्सव: बृज मैं राधाष्टमी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह राधाजी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इस दिन यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है, और भव्य झांकियां सजाई जाती हैं।
  • गोवर्धन की होली: गोवर्धन की होली का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण और राधा के साथ जुड़े हुए अनेक पौराणिक किस्सों और लीलाओं से जुड़ा हुआ है। बृज में श्रीकृष्ण ने अपनी युवावस्था में राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेली थी। कृष्ण की रासलीला में रंगों से खेलना और प्रेम का आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण भाग था। बृज में होली का त्योहार कृष्ण और राधा के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें रंगों का महत्व प्रेम और एकता के प्रतीक के रूप में है। गोवर्धन में फूलों की, लड्डुओं और रंगों की होली खेली जाती है, जहाँ स्थानीय लोग और पर्यटक मिलकर गुलाल उड़ा कर एक-दूसरे पर रंग लगाते हैं।

गोवर्धन से खरीदने योग्य वस्तुएं

बृजमण्डल विशेषकर मथुरा-वृंदावन, गोवर्धन भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और बाल्यकाल की लीला स्थली, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां की कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिन्हें आप खरीद सकते हैं:

  1. राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ: गोवर्धन में भगवान कृष्ण की विविध प्रकार की मूर्तियाँ मिलती हैं। आप लकड़ी, पत्थर या धातु की बनी मूर्तियाँ खरीद सकते हैं। ये मूर्तियाँ घर की पूजा के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
  2. पेंटिंग और चित्र: गोवर्धन की कला में लघु चित्रण का बड़ा महत्व है। यहां के कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स, विशेष रूप से राधा-कृष्ण की लीलाओं पर आधारित, बहुत सुंदर होती हैं। ये कला के प्रेमियों के लिए बेहतरीन उपहार हो सकती हैं।
  3. ठाकुरजी की पोशाक एवं श्रृंगार: पूरे बृजमण्डल मैं आपको ठाकुरजी (भगवान श्रीकृष्ण) की और राधारानी की खूबसूरत और मनोहारी पोशाकें तथा उनके श्रृंगार के लिए एक से बढ़कर एक वस्तुएं मिल जाएँगी, जिन्हे सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक से शृद्धालु बड़े ही प्रेमपूर्वक ले जाते हैं।
  4. कंठी-माला और पूजा सामग्री: बृजमण्डल मैं आपको कंठी-माला और पूजा सामग्री भी हर जगह मिल जाएगी। यहाँ की तुलसी माला तो वैष्णवजनों मैं अत्यंत लोकप्रिय है, साथ ही पूजा के लिए विशेष सामग्री भी बृज मैं आने वाले लाखों भक्तजन बड़े चाव से खरीदकर ले जाते हैं।
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गोवर्धन के मुख्य स्थानीय व्यंजन?

अब बृजमण्डल की बात हो और खानपान पर चर्चा न की जाये, ये तो असंभव हैं क्योंकि बृज के लोग खानपान के बड़े प्रेमी माने जाते हैं और उस पर भी मिठाइएं के लिए तो हर बृजवासी आपको दीवाना मिलेगा। गोवर्धन की यात्रा के दौरान यहां के पारंपरिक व्यंजन और मिठाइयाँ ज़रूर चखनी चाहिए। वैसे तो आपको खाने के लिए पारम्परिक नार्थ इंडियन और साउथ इंडियन भोजन बहुतायत मैं उपलब्ध है, पर जब यहां के स्थानीय भोजन की बात की जाती है तो आप निम्न व्यंजन का स्वाद लेना न भूलें

  1. मथुरा के पेड़े: बृज मैं आये और पेड़े नहीं खाये तो क्या ही खाया, वैसे तो बृज मैं इतने प्रकार की मिठाइयां मिलती हैं की आप सोच भी नहीं सकते पर इनमे सबसे प्रमुख हैं, मथुरा के पेड़े जो देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर हैं और इनका स्वाद आपको इन्हे भूलने नहीं देगा। तो जब भी बृजमण्डल मैं आएं तो यहाँ के पेड़े खाना और साथ ले जाना कभी न भूलें। वैसे तो श्रद्धालुगण ‘बृजवासी मिठाई वाले’ की मिठाइयां ही खरीदना पसंद करते हैं पर शहर मैं आपको अन्य स्थानों से भी बेहतरीन मिठाइयां खाने को मिलती हैं।
  2. जलेबी, कचौड़ी और आलू का झोल (सब्जी): यह बृजवासियों का प्रमुख नाश्ता है जिसके बिना बृजवासी दिन की शुरुवात की कल्पना भी नहीं करना चाहेंगे, यह गोवर्धन और पूरे बृजमण्डल मैं आपको स्थानीय दुकानों और खाने की जगहों पर बड़ी ही आसानी से मिलता है। गरमागरम कचौड़ी के साथ आलू का झोल (सब्जी) और साथ मैं गरम जलेबी की मिठास का स्वाद आपको हमेशा याद रहेगा। वैसे तो सोशल मीडिया पर मथुरा के रूपा की कचौड़ी फेमस है पर अगर आप अन्य स्थानों से भी कचौड़ी का स्वाद लेंगे तो मजा दोगुना हो जायेगा।
  3. दही की मीठी लस्सी: जलेबी, कचौड़ी के साथ अगर दही की ठंडी और मीठी लस्सी और पी ली जाये तो मानो सोने पर सुहागा। लस्सी खासतौर पर गर्मियों के दौरान बहुत पसंद की जाती है। यहाँ की मोटी मलाई वाली लस्सी का स्वाद आपको बरसाना और बृजमण्डल की यात्रा के दौरान एक अलग ताजगी का अनुभव देगा।
  4. कढ़ाई वाला गर्म दूध: शाम को खाना खाने के बाद, मिटटी के कुल्लड़ मैं गर्मागर्म दूध पीने का अपना अलग ही आनंद है, अगर आप बृजमण्डल प्रवास पर हैं तो इसका स्वाद लेना न भूलें। ये दूध आपको गली मोहल्ले के नुक्कड़ की छोटी दुकानों पर बहुतायत मैं मिल जायेगा।
  5. मक्खन और मिश्री: राधा और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मक्खन और मिश्री का सेवन यहां की धार्मिक यात्रा का एक हिस्सा है। कई मंदिरों के पास यह आपको आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  6. मेवा के लड्डू: विभिन्न प्रकार की मेवाओं व देसी घी ने निर्मित ये लड्डू बहुत प्रसिद्ध हैं। इन लड्डुओं का स्वाद बेहद खास होता है और यह यहां की एक विशिष्ट मिठाई है।
  7. खुरचन: बृज की खुरचन का भी एक अलग ही अंदाज है, दूध की मलाई से बनी केसर-इलाइची युक्त ये मिठाई आपकी स्वाद ग्रंथियों को अलग ही आनंद देगी।

इसके अलावा भी आप बस नाम बताईये और आपकी पसंदीदा मिठाई आपके सामने हाजिर है, क्योंकि बृज मैं आपको बेहतरीन और स्वादिष्ट मिठाइयां बेचनेवाले और खानेवाले दोनों ही बहुतायत मैं मिल जायेंगे।

यात्रा का सर्वश्रेष्ठ समय

वैसे तो पूरे वर्ष ही आप गोवर्धन की यात्रा के लिए आ सकते हैं क्योंकि आध्यात्मिक नगरी होने के कारण यहाँ हर हिन्दू त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, पर अगर आप यहाँ की होली का आनंद लेना चाहते हैं तो मार्च मैं आएं, जब यहां चहुंओर होली की धूम रहती हैं और विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है। और अगर कृष्ण जन्मष्टमी का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अगस्त माह आपके लिए उपर्युक्त है, पर गोवर्धन पूजा का अवसर प्राप्त करने के लिए आपको अक्टूबर या नवंबर मैं आना पड़ेगा। वैसे नवंबर से मार्च के बीच का मौसम अत्यधिक ठंडा रहता है। इस समय आते समय गर्म कपडे लाना न भूलें अन्यथा आपको शीतलहर का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। पूरे साल मैं आप कभी भी आएं, आपको यहाँ आकर आत्मिक और मानसिक शांति का अहसास जरूर मिलेगा और आप अपने को कृष्णरस मैं भीगने से बचा नहीं पाएंगे।

गोवर्धन कैसे पहुंचे?

मथुरा भारत के प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है:

  • वायु मार्ग: मथुरा का निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो यहाँ से 160 किमी दूर है। वहां से आप टैक्सी या बस के माध्यम से गोवर्धन आसानी से पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मथुरा रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा है और यहाँ से आपको तकरीबन हर जगह के लिए आने जाने की ट्रेन सुविधा मिल जाएगी। यहाँ से टैक्सी या ऑटो लेकर आसानी से गोवर्धन घूम सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मथुरा दिल्ली, आगरा, जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों से अच्छी तरह सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप आसानी से अपने निजी वहां से यहाँ पहुँच सकते हैं साथ ही यहाँ नियमित बस सेवा भी उपलब्ध है।

गोवर्धन में ठहरने के उत्तम स्थान

गोवर्धन में काफी धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं, जो आपके बजट और सुविधा के अनुसार विकल्प प्रदान करते हैं। साथ ही आस-पास स्थित, मथुरा, गोकुल, बरसाना, आदि में भी अच्छे होटल्स मिल जाते हैं। यहां पर आपको लक्ज़री से लेकर बजट होटल्स, होमस्टे, डोरमेट्री और धर्मशाला तक के कई विकल्प आसानी से मिलेंगे। पर अगर आप किसी त्यौहार पर आने का प्लान बना रहे हैं तो एडवांस बुकिंग करवाना अधिक सुविधाजनक रहेगा।

ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें

  • स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें: धार्मिक नगरी होने के कारण यहाँ के लोग रीति-रिवाजों के प्रति बहुत आस्थावान हैं। इसलिए स्थानीय संस्कृति का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
  • पर्यावरण की सुरक्षा: यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने के लिए पर्यावरण का ध्यान रखें। प्लास्टिक का उपयोग काम से काम करें करें और कचरा सही स्थान पर फेंकें।
  • धैर्य व अनुशासन रखें: धार्मिक स्थलों पर भीड़ हो सकती है। धैर्य व अनुशासन बनाए रखें और सब कुछ आराम से करें।
  • स्थानीय लोगों के साथ संवाद करें: उनकी मदद से आप मथुरा के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में जान सकते हैं।
  • उचित वस्त्र पहनें: धार्मिक स्थलों पर जाने के दौरान आपको साधारण और पारंपरिक वस्त्र पहनने चाहिए। महिलाओं को साड़ी या सलवार-कुर्ता पहनना उचित होता है, जबकि पुरुषों को कुर्ता या टी-शर्ट और पैंट पहनना चाहिए। इसके लिए आप बाध्य नहीं हैं पर आध्यात्मिक यात्रा के दौरान आपका पहनावा आपके विचारों को निश्चित ही प्रभावित करता है।

गोवर्धन (ब्रजमण्डल) यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह आपको उत्तर प्रदेश की पारंपरिक संस्कृति, बृजमंडल के स्वादिष्ट भोजन और ऐतिहासिक महत्व से परिचित कराती है। यहां की यात्रा करने पर आप भारतीय धर्म और कृष्ण भक्ति के एक अनोखे अनुभव को महसूस करेंगे। यहाँ की पावन रज और आध्यात्मिकता आपको एक अलग ही स्तर पर ले जाएगी, ये यात्रा आपको न सिर्फ भौतिक वरन आत्मिक रूप से भी अध्यात्म से ओतप्रोत कर देगी, जो आपके जीवन मैं यकीनन एक यात्रा एक समृद्ध और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करेगी।


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