मथुरा: बृजमण्डल मैं प्रेम, भक्ति और कृष्णरस के अनूठे संगम की आध्यत्मिक यात्रा.

Mathura: A spiritual journey of unique confluence of love, devotion and Krishnaras in Brijmandal.

दिल्ली से 160 किलोमीटर दूर और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है लीलाधर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली ‘मथुरा’, जो न सिर्फ बृज मंडल का प्रमुख शहर है अपितु अपने आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। इसे भारत की सात पुरानी नगरियों (सप्तपुरियों) में से एक माना जाता है और यह पौराणिक काल से धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक रहा है।

बृज मंडल और धार्मिक आस्था

बृज मंडल, उत्तर प्रदेश के मथुरा के आसपास फैला हुआ वो पवित्र तीर्थस्थल है, जो लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और उनके द्वारा की गयी लीलाओं का साक्षी रहा है। इस समस्त क्षेत्र को “बृज भूमि” के नाम से भी जाना जाता है और इसमें मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव, राधाकुंड, दाऊजी आदि प्रमुख स्थान शामिल हैं। यहाँ के क्षेत्रवासियों को ‘बृजवासी’ कहा जाता है। समस्त बृज मंडल 84 कोस मैं फैला हुआ है, जहाँ पग पग मैं भगवान श्रीकृष्ण, जिनको बृजवासी स्नेह से कान्हा या लल्ला कहकर सम्बोधित करते है की लीलाओं के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं। बृज यात्रा का महत्व भक्ति और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। यहाँ की यात्रा करते समय श्रद्धालु विभिन्न कुंडों में स्नान करते हैं, मंदिरों के दर्शन करते हैं। यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके अनोखे प्रेम और लीलाओं की याद दिलाती है। बृज भूमि में भ्रमण करने से मनुष्य को मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।

मथुरा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

मथुरा का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। यह स्थान महाभारत, श्रीमद्भागवत पुराण और विष्णु पुराण जैसे कई धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है, पूर्व मैं इसे मधुपुरी या मधुरा भी कहा जाता था। इस भूमि पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और इसके पश्चात् अपने अत्याचारी मामा, कंस का वध कर मथुरा को उसकी क्रूरता से मुक्त किया था। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के कारण ही मथुरा की विशेष धार्मिक प्रतिष्ठा है और यहाँ का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भक्तों का प्रमुख आकर्षण है। यह नगर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं, राधा कृष्ण के अप्रतिम प्रेम, महारास एवं उनके आध्यात्मिक ज्ञान के कारण सम्पूर्ण विश्व मैं अपना अलग अस्तित्व बनाये हुए है। आइए जानते हैं कि मथुरा में आपको क्या देखना चाहिए, ठहरने के क्या स्थान हैं, यहां का प्रसिद्ध खान-पान क्या है और यहाँ से आप क्या खरीद सकते हैं।

मथुरा के प्रमुख दर्शनीय स्थल

  • कृष्ण जन्मभूमि मंदिर: यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण का पवित्र जन्मस्थान माना जाता है। यह मंदिर अत्यंत श्रद्धा का केंद्र है, जहां सालभर देश-विदेश से भक्त आते हैं। यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) पर यहाँ विशेष भव्य आयोजन होता है, जिसमें झांकियां, भजन-कीर्तन और रासलीलाएं होती हैं।
  • पोतरा कुंड: मथुरा में स्थित एक पवित्र जलाशय है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के स्नान स्थल के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने यहां अपनी बाल लीलाओं के दौरान स्नान किया था। इसे भगवान कृष्ण द्वारा अपनी बाल सखाओं के साथ पानी में खेलते समय शुद्ध करने का प्रतीक भी माना जाता है। यह कुंड वास्तुकला और धार्मिक महत्व की दृष्टि से अद्वितीय है और हर वर्ष यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं।
  • द्वारकाधीश मंदिर: मथुरा का एक प्रमुख और ऐतिहासिक मंदिर है, जो भगवान कृष्ण के द्वारकाधीश (द्वारका के राजा) स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति को राधारानी के साथ स्थापित किया गया है। जन्माष्टमी और होली के अवसर पर यहां विशेष रूप से भीड़ होती है, और भव्य झांकियां, फूलों की सजावट, और भक्ति संगीत का आयोजन होता है।
  • विश्राम घाट: मथुरा का एक पवित्र घाट है, जो यमुना नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के बाद यहाँ विश्राम किया था, इसी कारण इसे “विश्राम घाट” कहा जाता है। यहाँ पर यमुना आरती का आयोजन होता है, जो एक प्रमुख आकर्षण है और जिसमें भाग लेकर श्रद्धालु अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। यहाँ का वातावरण दिव्यता से भरपूर होता है, विशेषकर शाम के समय जब दीप और मंत्रोच्चार से घाट की शोभा बढ़ जाती है।
  • कंस किला: यमुना नदी के पास एक ऊँचे स्थान पर स्थित है। हालांकि समय के साथ किले का अधिकतर हिस्सा नष्ट हो गया है, लेकिन आज भी इसके अवशेष इसकी प्राचीनता और महाभारतकालीन वास्तुकला को दर्शाते हैं। इसकी दीवारों और संरचनाओं में मथुरा की स्थापत्य शैली का प्रभाव देखने को मिलता है, जो पर्यटकों और इतिहासकारों को आकर्षित करता है।
  • भूतेश्वर महादेव मंदिर: माना जाता है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और इसका संबंध महाभारत काल से है। कहते हैं कि भगवान शिव ने स्वयं मथुरा को अपनी कृपा से विभूषित किया था और इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने का संकल्प लिया था। “भूतेश्वर” नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान शिव ने यहाँ अपनी दिव्य शक्ति से भूतों, प्रेतों और नकारात्मक शक्तियों का नाश किया था।
  • गलतेश्वर महादेव मंदिर: मथुरा का गलतेश्वर महादेव मंदिर पुराने समय की भारतीय स्थापत्य शैली का एक उदाहरण है। इसे देखने पर यह किसी प्राचीन महाकाव्य के दृश्य जैसा प्रतीत होता है, जहाँ पत्थरों पर बारीकी से की गई नक्काशी और सुंदर खंभों की संरचना इसकी ऐतिहासिकता और धार्मिकता को प्रदर्शित करती है।
  • रंगेश्वर महादेव मंदिर: मंदिर की स्थापना और इसकी पौराणिक महत्ता से जुड़ी कहानियाँ मथुरा की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को और भी विशेष बनाती हैं। माना जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों पुराना है और यहाँ भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तगण दूर-दूर से आते हैं।
  • होलीगेट: मथुरा का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। यह मथुरा शहर के मध्य में स्थित एक मुख्य प्रवेश द्वार है, जो न केवल यहाँ के निवासियों के लिए बल्कि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। होलीगेट का निर्माण कई शताब्दियों पहले किया गया था और यह मथुरा की प्राचीन वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
  • यमुना विहार: यमुना जी जिसे बृजवासी जमुना मैया के नाम से भी सम्बोधित करते हैं, मथुरा की जीवनरेखा का बहुत ही अभिन्न हिस्सा है, यह मोक्षदायिनी नदी मथुरा के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। माना जाता है कि यमुना में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है, और मथुरा में आने वाले तीर्थयात्री इस पवित्र नदी में स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। यमुना नदी के किनारे कई प्रसिद्ध घाट स्थित हैं, यहाँ शाम को होने वाली यमुना आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं। साथ ही वो नावों मैं सवार होकर युमना विहार का आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं।
  • मथुरा का संग्रहालय: मथुरा संग्रहालय की स्थापना 1874 में हुई थी, और इसे भारत के प्रसिद्ध वायसराय लॉर्ड कर्ज़न ने प्रोत्साहन दिया था। इस संग्रहालय का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप के पुरातात्विक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजना और संरक्षित करना था। यह संग्रहालय बृज क्षेत्र की अद्वितीय कला शैली के संग्रह को प्रदर्शित करता है और इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण संग्रहालयों में गिना जाता है। यहाँ विभिन्न कालों की दुर्लभ और कीमती मूर्तियां (गुप्त, कुषाण और शुंग काल) की अनमोल मूर्तियां हैं, कुषाण और मौर्य काल के विभिन्न धातु के सिक्के, टेराकोटा कला, चित्रकला, और विभिन्न शिल्पकला के नमूने संजोए गए हैं।

इसके अलावा आप मथुरा के आसपास के क्षेत्रों जैसे वृन्दावन, गोवर्धन, बरसाना, नंदगाव, गोकुल, महावन,दाऊजी आदि का भ्रमण कर कृष्ण लीलाओं का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।

मथुरा के प्रमुख उत्सव और त्योहार

मथुरा हो या वृंदावन या फिर बृजमण्डल का कोई भी स्थान, यहाँ पर हिन्दुओं के सभी त्यौहार और उत्सवों को धूमधाम से मानाने की परंपरा रही है, पर श्रीकृष्ण की भक्तिभाव की अधिकता के कारण कुछ त्योहारों पर यहाँ का उल्लास और यहाँ की छठा अलग ही होती है।

  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है। जन्माष्टमी पर भक्तजन पूरे दिन व्रत रखते हैं और रात में अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारका, और इस्कॉन मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मंचन किया जाता है।
  • राधाष्टमी उत्सव: बृज मैं राधाष्टमी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह राधाजी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इस दिन यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है, और भव्य झांकियां सजाई जाती हैं।
  • मथुरा की होली: मथुरा की होली का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण और उनकी राधा के साथ जुड़े हुए अनेक पौराणिक किस्सों और लीलाओं से जुड़ा हुआ है। मथुरा और वृंदावन में श्रीकृष्ण ने अपनी युवावस्था में राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेली थी। कृष्ण की रासलीला में रंगों से खेलना और प्रेम का आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण भाग था। मथुरा में होली का त्योहार कृष्ण और राधा के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें रंगों का महत्व प्रेम और एकता के प्रतीक के रूप में है। मथुरा में रंगों की होली खेली जाती है, जहाँ स्थानीय लोग और पर्यटक मिलकर गुलाल उड़ा कर एक-दूसरे पर रंग लगाते हैं।
  • गोवर्धन पूजा: दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है और इसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने गोकुलवासियों की रक्षा के लिए इंद्र देव के प्रकोप से बचाने हेतु अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करते हैं और अन्नकूट का आयोजन करते हैं।
  • यमुना जी का चुनरी मनोरथ: मथुरा, वृंदावन में यमुना जी का चुनरी मनोरथ एक अत्यंत भव्य और श्रद्धापूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। इस विशेष पूजा में भक्तगण यमुना मैया को चुनरी अर्पित करते हैं, जिसमें उनकी श्रद्धा, भक्ति, और कृतज्ञता का भाव होता है। यमुना जी को माता का स्वरूप माना जाता है, और चुनरी चढ़ाकर भक्त उन्हें सम्मान और प्रेम अर्पित करते हैं। चुनरी मनोरथ के समय यमुना का दृश्य अत्यंत मनोहारी और आस्था से भरा होता है। सैकड़ों रंगीन चुनरियाँ यमुना के जल पर बहती हुई एक अलौकिक छटा प्रस्तुत करती हैं। इस आयोजन में दूर-दूर से श्रद्धालु भाग लेने आते हैं और यमुना मैया के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
  • मथुरा पंचकोशीय परिक्रमा: यह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है, जो विशेषकर अक्षय नवमी के अवसर पर लगायी जाती है और जो मथुरा नगरी में स्थित विभिन्न धार्मिक स्थलों, मंदिरों और घाटों को नमन करने का अवसर देती है। यह परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में उनके जीवन और लीलाओं से जुड़े स्थलों के दर्शन के लिए की जाती है। मथुरा परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए भक्ति, पुण्य और आध्यात्मिकता का विशेष अनुभव है, जो उनके जीवन में धार्मिक संतोष और आशीर्वाद लाता है। बृज मै कई प्रचलित परिक्रमा हैं जिनमे भक्तगण समय समय पर भाग लेते हैं, जिसमे मुख्य रूप से बृज चौरासी कोस परिक्रमा, एक वन या तीन वन की परिक्रमा, गोवर्धन की परिक्रमा, बरसाने की परिक्रमा और मथुरा की पंचकोशीय परिक्रमा शामिल हैं।
  • कंस वध मेला: मथुरा के चतुर्वेदी समाज द्वारा आयोजित किया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है, जो हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के बाद मनाया जाता है। यह मेला भगवान श्री कृष्ण के राक्षस राजा कंस द्वारा बंदी बनाए जाने और कृष्ण के द्वारा कंस का वध करने के महाकाव्य को समर्पित होता है। इस दिन चतुर्वेदी समाज द्वारा कंस का प्रतीकात्मक पुतला शहर मैं घुमाया जाता है और बाद मैं उसे लाठी डंडों से पीटा जाता है, मेला के दौरान रासलीला, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
Barsana, Holi

मथुरा-वृंदावन से खरीदने योग्य वस्तुएं

बृजमण्डल विशेषकर मथुरा और वृंदावन, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और बाल्यकाल की लीला स्थली, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां की कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिन्हें आप खरीद सकते हैं:

  1. राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ: मथुरा, वृंदावन में भगवान कृष्ण की विविध प्रकार की मूर्तियाँ मिलती हैं। आप लकड़ी, पत्थर या धातु की बनी मूर्तियाँ खरीद सकते हैं। ये मूर्तियाँ घर की पूजा के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
  2. पेंटिंग और चित्र: मथुरा, वृंदावन की कला में लघु चित्रण का बड़ा महत्व है। यहां के कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स, विशेष रूप से राधा-कृष्ण की लीलाओं पर आधारित, बहुत सुंदर होती हैं। ये कला के प्रेमियों के लिए बेहतरीन उपहार हो सकती हैं।
  3. ठाकुरजी की पोशाक एवं श्रृंगार: पूरे बृजमण्डल मैं आपको ठाकुरजी (भगवान श्रीकृष्ण) की और राधारानी की खूबसूरत और मनोहारी पोशाकें तथा उनके श्रृंगार के लिए एक से बढ़कर एक वस्तुएं मिल जाएँगी, जिन्हे सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक से शृद्धालु बड़े ही प्रेमपूर्वक ले जाते हैं।
  4. कंठी-माला और पूजा सामग्री: बृजमण्डल मैं आपको कंठी-माला और पूजा सामग्री भी हर जगह मिल जाएगी। यहाँ की तुलसी माला तो वैष्णवजनों मैं अत्यंत लोकप्रिय है, साथ ही पूजा के लिए विशेष सामग्री भी बृज मैं आने वाले लाखों भक्तजन बड़े चाव से खरीदकर ले जाते हैं।
Laddu Gopal Ki Poshak

मथुरा के मुख्य स्थानीय व्यंजन?

अब बृजमण्डल की बात हो और खानपान पर चर्चा न की जाये, ये तो असंभव हैं क्योंकि बृज के लोग खानपान के बड़े प्रेमी माने जाते हैं और उस पर भी मिठाइएं के लिए तो हर बृजवासी आपको दीवाना मिलेगा। मथुरा की यात्रा के दौरान यहां के पारंपरिक व्यंजन और मिठाइयाँ ज़रूर चखनी चाहिए। वैसे तो आपको खाने के लिए पारम्परिक नार्थ इंडियन और साउथ इंडियन भोजन बहुतायत मैं उपलब्ध है, पर जब यहां के स्थानीय भोजन की बात की जाती है तो आप निम्न व्यंजन का स्वाद लेना न भूलें

  1. मथुरा के पेड़े: बृज मैं आये और पेड़े नहीं खाये तो क्या ही खाया, वैसे तो बृज मैं इतने प्रकार की मिठाइयां मिलती हैं की आप सोच भी नहीं सकते पर इनमे सबसे प्रमुख हैं, मथुरा के पेड़े जो देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर हैं और इनका स्वाद आपको इन्हे भूलने नहीं देगा। तो जब भी बृजमण्डल मैं आएं तो यहाँ के पेड़े खाना और साथ ले जाना कभी न भूलें। वैसे तो श्रद्धालुगण ‘बृजवासी मिठाई वाले’ की मिठाइयां ही खरीदना पसंद करते हैं पर शहर मैं आपको शंकर मिठाईवाला, कालीचरण, भरतपुरिया, रमन हलवाई, राधिका स्वीट्स आदि से भी बेहतरीन मिठाइयां खाने को मिलती हैं।
  2. जलेबी, कचौड़ी और आलू का झोल (सब्जी): यह बृजवासियों का प्रमुख नाश्ता है जिसके बिना बृजवासी दिन की शुरुवात की कल्पना भी नहीं करना चाहेंगे, यह मथुरा और पूरे बृजमण्डल मैं आपको स्थानीय दुकानों और खाने की जगहों पर बड़ी ही आसानी से मिलता है। गरमागरम कचौड़ी के साथ आलू का झोल (सब्जी) और साथ मैं गरम जलेबी की मिठास का स्वाद आपको हमेशा याद रहेगा। वैसे तो सोशल मीडिया पर मथुरा के रूपा की कचौड़ी फेमस है पर अगर आप ओमा हलवाई, राधिका, भरतपुरिया, रमन हलवाई या फिर यादव की कचौड़ी का स्वाद लेंगे तो मजा दोगुना हो जायेगा।
  3. दही की मीठी लस्सी: जलेबी, कचौड़ी के साथ अगर दही की ठंडी और मीठी लस्सी और पी ली जाये तो मानो सोने पर सुहागा। लस्सी खासतौर पर गर्मियों के दौरान बहुत पसंद की जाती है। यहाँ की मोटी मलाई वाली लस्सी का स्वाद आपको बरसाना और बृजमण्डल की यात्रा के दौरान एक अलग ताजगी का अनुभव देगा।
  4. कढ़ाई वाला गर्म दूध: शाम को खाना खाने के बाद, मिटटी के कुल्लड़ मैं गर्मागर्म दूध पीने का अपना अलग ही आनंद है, अगर आप बृजमण्डल प्रवास पर हैं तो इसका स्वाद लेना न भूलें। ये दूध आपको गली मोहल्ले के नुक्कड़ की छोटी दुकानों पर बहुतायत मैं मिल जायेगा।
  5. मक्खन और मिश्री: राधा और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मक्खन और मिश्री का सेवन यहां की धार्मिक यात्रा का एक हिस्सा है। कई मंदिरों के पास यह आपको आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  6. मेवा के लड्डू: विभिन्न प्रकार की मेवाओं व देसी घी ने निर्मित ये लड्डू बहुत प्रसिद्ध हैं। इन लड्डुओं का स्वाद बेहद खास होता है और यह यहां की एक विशिष्ट मिठाई है।
  7. खुरचन: मथुरा की खुरचन का भी एक अलग ही अंदाज है, दूध की मलाई से बनी केसर-इलाइची युक्त ये मिठाई आपकी स्वाद ग्रंथियों को अलग ही आनंद देगी।

इसके अलावा भी आप बस नाम बताईये और आपकी पसंदीदा मिठाई आपके सामने हाजिर है, क्योंकि बृज मैं आपको बेहतरीन और स्वादिष्ट मिठाइयां बेचनेवाले और खानेवाले दोनों ही बहुतायत मैं मिल जायेंगे।

यात्रा का सर्वश्रेष्ठ समय

वैसे तो पूरे वर्ष ही आप मथुरा की यात्रा के लिए आ सकते हैं क्योंकि आध्यात्मिक नगरी होने के कारण यहाँ हर हिन्दू त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, पर अगर आप यहाँ की होली का आनंद लेना चाहते हैं तो मार्च मैं आएं, जब यहां चहुंओर होली की धूम रहती हैं और विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है। और अगर कृष्ण जन्मष्टमी का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अगस्त माह आपके लिए उपर्युक्त है, पर गोवर्धन पूजा का अवसर प्राप्त करने के लिए आपको अक्टूबर या नवंबर मैं आना पड़ेगा। वैसे नवंबर से मार्च के बीच का मौसम अत्यधिक ठंडा रहता है। इस समय आते समय गर्म कपडे लाना न भूलें अन्यथा आपको शीतलहर का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। पूरे साल मैं आप कभी भी आएं, आपको यहाँ आकर आत्मिक और मानसिक शांति का अहसास जरूर मिलेगा और आप अपने को कृष्णरस मैं भीगने से बचा नहीं पाएंगे।

मथुरा कैसे पहुंचे?

मथुरा भारत के प्रमुख शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है:

  • वायु मार्ग: मथुरा का निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो यहाँ से 160 किमी दूर है। वहां से आप टैक्सी या बस के माध्यम से मथुरा आसानी से पहुंच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: मथुरा रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा है और यहाँ से आपको तकरीबन हर जगह के लिए आने जाने की ट्रेन सुविधा मिल जाएगी। यहाँ से टैक्सी या ऑटो लेकर आसानी से शहर घूम सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: मथुरा दिल्ली, आगरा, जयपुर और लखनऊ जैसे शहरों से अच्छी तरह सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप आसानी से अपने निजी वहां से यहाँ पहुँच सकते हैं साथ ही यहाँ नियमित बस सेवा भी उपलब्ध है।

मथुरा में ठहरने के उत्तम स्थान

मथुरा में काफी धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं, जो आपके बजट और सुविधा के अनुसार विकल्प प्रदान करते हैं। साथ ही आस-पास स्थित वृंदावन, गोकुल, बरसाना, गोवर्धन आदि में भी अच्छे होटल्स मिल जाते हैं। यहां पर आपको लक्ज़री से लेकर बजट होटल्स, होमस्टे, डोरमेट्री और धर्मशाला तक के कई विकल्प आसानी से मिलेंगे। पर अगर आप किसी त्यौहार पर आने का प्लान बना रहे हैं तो एडवांस बुकिंग करवाना अधिक सुविधाजनक रहेगा।

ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें

  • स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें: धार्मिक नगरी होने के कारण यहाँ के लोग रीति-रिवाजों के प्रति बहुत आस्थावान हैं। इसलिए स्थानीय संस्कृति का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
  • पर्यावरण की सुरक्षा: यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने के लिए पर्यावरण का ध्यान रखें। प्लास्टिक का उपयोग काम से काम करें करें और कचरा सही स्थान पर फेंकें।
  • धैर्य व अनुशासन रखें: धार्मिक स्थलों पर भीड़ हो सकती है। धैर्य व अनुशासन बनाए रखें और सब कुछ आराम से करें।
  • स्थानीय लोगों के साथ संवाद करें: उनकी मदद से आप मथुरा के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में जान सकते हैं।
  • उचित वस्त्र पहनें: धार्मिक स्थलों पर जाने के दौरान आपको साधारण और पारंपरिक वस्त्र पहनने चाहिए। महिलाओं को साड़ी या सलवार-कुर्ता पहनना उचित होता है, जबकि पुरुषों को कुर्ता या टी-शर्ट और पैंट पहनना चाहिए। इसके लिए आप बाध्य नहीं हैं पर आध्यात्मिक यात्रा के दौरान आपका पहनावा आपके विचारों को निश्चित ही प्रभावित करता है।
Image Credits: The Vagabond Films

मथुरा (ब्रजमण्डल) यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह आपको उत्तर प्रदेश की पारंपरिक संस्कृति, बृजमंडल के स्वादिष्ट भोजन और ऐतिहासिक महत्व से परिचित कराती है। यहां की यात्रा करने पर आप भारतीय धर्म और कृष्ण भक्ति के एक अनोखे अनुभव को महसूस करेंगे। यहाँ की पावन रज और आध्यात्मिकता आपको एक अलग ही स्तर पर ले जाएगी, ये यात्रा आपको न सिर्फ भौतिक वरन आत्मिक रूप से भी अध्यात्म से ओतप्रोत कर देगी, जो आपके जीवन मैं यकीनन एक यात्रा एक समृद्ध और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करेगी।


JatBulletin

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