औषधीय फसलें बदल सकती हैं किसान की वर्तमान दशा – राकेश चौधरी

बनें प्रगतिशील किसान पाएं तरक्की, मुनाफा और सम्मान

जी हां बदलते भारत में देश के किसानों की आय बढ़ाने के लिये किए जा रहे प्रयोगों और आयुर्वेद के बढ़ते चलन से औषधीय फसलों को बड़ा बाजार उपलब्ध हुआ है। आवश्यकता है इन फसलों के बारे में पूर्ण जानकारी, मिट्टी- पानी की जांच और स्वयं के अंदर नए ज्ञान को आत्मसात करने की एक ललक की।

इस बारे में राष्ट्रीय औषधीय पादप मंडल, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के सदस्य और देशभर में जड़ी बूटियों की खेती के प्रचार प्रसार के लिए 5 लाख किलोमीटर यात्रा कर हर्बल क्रांति की शुरुआत करने वाले राकेश चौधरी ने देशभर के किसानों का आह्वान करते हुए कहा,”आज समय की मांग यही है कि किसान अपनी बेहतरी के लिए औषधीय फसलों को उगाना शुरू करें। परंपरागत खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रही।” जयपुर के महाराजा कॉलेज से साइंस ग्रेजुएट राकेश चौधरी ने बताया कि त्रिस्तरीय फसली चक्र से शुरुआत करना फायदेमंद रहता है। इस तरीके में पहले मेड़बन्दी की फसलें लगाएं, जिसमे नींबू, करौंदा जैसे कांटेदार वृक्ष तत्पश्चात बहुवर्षीय पौधे जैसे नीम, विल्बपत्र, आंवला आदि इसके बाद खाली बची जगह में आवश्यकता अथवा मांग के अनुसार गिलोय, तुलसी, एलोवेरा, शतावर, अश्वगंधा जैसी औषधीय फसलें उगाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

और भी बहुत सी औषधीय फसलें हैं, जैसे बड़ा गोखरू, छोटा गोखरू, पुनर्नवा, कुसुम (कुछ ठग इसे केसर बताकर भी किसानों की जेब काट लेते हैं), केर सांगरी, काचरी, सनाय, गुग्गल आदि भी उगा सकते हैं। आज स्थिति यह है कि सर्वाधिक मांग वाली गुग्गल भारत मे ही लुप्त होने के कगार पर आ चुका है। इसमें उत्पादन लेने में 7 से 8 वर्ष का समय लगता है, इसलिए भविष्य की बेहतरी के लिए अभी से प्रत्येक खेत मे 10 से 20 गुग्गल के पौधे अवश्य लगा देने चाहिएं। चौधरी ने बताया कि थोड़ी सी ट्रेनिंग से पूरी तकनीक को समझकर और अपने क्षेत्र की मिट्टी-पानी की जांच के उपरांत जलवायु के अनुसार पूर्ण आत्मीयता के साथ यदि औषधीय खेती करें तो देश के किसान अपने साथ साथ समाज और देश का भी भला कर सकते हैं।

दलाल, बिचौलियों और जुबानी वायदों में फंसने पर किसान उठा जाते हैं नुकसान

चौधरी ने विशेष हिदायत देते हुए बताया कि सिर्फ किसी के कह देने भर से या दलाल, बिचौलियों पर भरोसा करके कुछ भी उगा लेने में कोई समझदारी नहीं है। ऐसा करने से निश्चित तौर पर नुकसान ही होता है। एक तो ये लोग पचास पैसे से एक रुपये तक के पौधे को भी 3 से 5 रुपये में उपलब्ध कराके किसानों को ठग लेते हैं और फसल तैयार होने तक ये गायब हो जाते हैं। विश्वसनीय संस्थान या फार्मेसी से लिखित कॉन्ट्रेक्ट साइन करने के बाद ही आगे बढ़ना श्रेयस्कर है। राकेश जी ने बताया कि सरकार द्वारा इस दिशा में काफी प्रयास किये जा रहे हैं, फिर भी प्रत्येक जिले में एक ऐसा किसान सुविधा केंद्र होना आवश्यक है जिसमें औषधीय फसलों के लिए उचित बाजार, मांग, तकनीकी जानकारियों के साथ उचित मंच उपलब्ध करवाया जाय। किसानों में औषधीय खेती को लेकर प्रतिस्पर्धा बनाये रखने के लिये उत्पादकता पर अनुदान जैसे कार्यक्रम शुरू किए जाएं, तो इस दिशा में अभूतपूर्व क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।

Jat Bulletin

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