श्रीराम स्तुति एक प्रार्थना है जो भगवान श्रीराम की स्तुति और महिमा का गुणगान करती है। इसे पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में भगवान राम के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यहां श्रीराम स्तुति का हिंदी अर्थ सहित वर्णन किया गया है:
श्रीराम स्तुति:
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्॥
अर्थ: प्रभु श्रीरामचन्द्र जो कृपालु हैं, इस संसार के भय और कष्ट को हरने वाले हैं। जिनकी आँखें नव विकसित कमल के समान हैं, मुख कमल के समान है, उनके कर (हाथ) कमल के समान हैं, और उनके चरण भी लालिमा लिए हुए कमल के समान हैं। ऐसे कृपानिधान को मैं शुद्ध मन से नमन व स्मरण करता हूँ।
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
अर्थ: प्रभु श्रीराम की सुंदरता अनगिनत कामदेवों से भी अधिक है। उनका रूप नव नीलकमल जैसा है, जो घने नीले बादलों की तरह सुंदर है। वे पीताम्बर अर्थात पीले वस्त्र धारण करते हैं, जो बिजली की चमक के समान उज्ज्वल है। मैं ऐसे प्रभु श्रीराम को नमन करता हूँ, जो जनक की पुत्री (सीता) के पति हैं।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथ नन्दनम्॥
अर्थ: जो दीनों और दुखियों के मित्र हैं, सूर्य के समान तेजस्वी व संसार के पालनहार हैं और दानवों व दैत्यों के वंश का नाश करने वाले हैं। वे रघुकुल के आनंद के स्रोत हैं, कौशल राज्य के चंद्रमा हैं और राजा दशरथ के पुत्र हैं।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणम्॥
अर्थ: जिनके सिर पर सुंदर मुकुट विराजमान है, कानों में कुंडल और उनके मस्तक पर सुंदर तिलक है। उनके अंगों पर दिव्य आभूषण सुशोभित हैं। वे लम्बी भुजाओं वाले हैं, उनके हाथों में धनुष और बाण है और जिन्होंने संग्राम में खर-दूषण जैसे राक्षसों को पराजित किया है।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनम्॥
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान श्रीराम देवाधिदेव महादेव शंकर, शेषनाग और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं। हे श्रीराम! मेरे हृदय रूपी कमल में निवास करो और काम, क्रोध आदि दुष्ट विचारों का नाश करो।
श्रीराम स्तुति का महत्व:
श्रीराम स्तुति भगवान राम की महिमा का गुणगान करने वाली एक अत्यंत सुंदर प्रार्थना है। यह स्तुति व्यक्ति के भीतर भक्ति और श्रद्धा को जाग्रत करती है और उन्हें जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। इस स्तुति को नियमित रूप से करने से मनुष्य के मन में शांति, भक्ति और भगवान राम के प्रति असीम प्रेम की भावना विकसित होती है।
💡 यह भी देखें: श्री रुद्राष्टकम (अर्थ सहित)
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