भारतीय शेयर बाजार में बुधवार को एक बड़ी खबर ने हलचल मचा दी, जब अडानी ग्रुप ने केबल्स और वायर्स उद्योग में अपनी एंट्री की घोषणा की। इस खबर का सबसे बड़ा असर केईआई इंडस्ट्रीज (KEI Industries) पर पड़ा, जिसके शेयरों में गुरुवार, 20 मार्च 2025 को शुरुआती कारोबार में 14% तक की भारी गिरावट दर्ज की गई। इसके साथ ही, पॉलीकैब इंडिया (Polycab India), हवेल्स इंडिया (Havells India), फिनोलेक्स केबल्स (Finolex Cables), और आरआर केबल (RR Kabel) जैसे अन्य प्रमुख खिलाड़ियों के शेयरों में भी 4% से 9% तक की कमी देखी गई। अडानी की इस नई पहल ने उद्योग में मौजूदा कंपनियों के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। आइए इस खबर के पीछे की कहानी, बाजार की प्रतिक्रिया और इसके भविष्य के प्रभावों पर विस्तार से नजर डालते हैं।
अडानी की नई कंपनी: प्रणिता इकोकेबल्स लिमिटेड (Adani Cables)
अडानी एंटरप्राइजेज ने बुधवार को एक एक्सचेंज फाइलिंग में बताया कि उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी कच्छ कॉपर लिमिटेड (Kutch Copper Ltd) ने प्रणिता वेंचर्स के साथ मिलकर एक जॉइंट वेंचर “प्रणिता इकोकेबल्स लिमिटेड” की स्थापना की है। इस नई कंपनी में अडानी की 50% हिस्सेदारी होगी, और इसका उद्देश्य धातु उत्पादों, विशेष रूप से केबल्स और वायर्स का निर्माण, विपणन और वितरण करना है। यह घोषणा उस समय आई है, जब पिछले महीने बिरला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट ने भी इस सेगमेंट में कदम रखने की योजना का खुलासा किया था।
कच्छ कॉपर पहले से ही कॉपर रिफाइनिंग में सक्रिय है, और अब यह नया उद्यम अडानी ग्रुप के कॉपर बिजनेस को और विस्तार देने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। अडानी की यह एंट्री उनके मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और रिन्यूएबल एनर्जी पोर्टफोलियो के साथ तालमेल बिठाती है, क्योंकि केबल्स और वायर्स इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बाजार की तीखी प्रतिक्रिया
20 मार्च 2025 को सुबह के कारोबारी सत्र में, अडानी की इस घोषणा ने बाजार में तूफान ला दिया। केईआई इंडस्ट्रीज (KEI Shares) के शेयर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, जो 14% तक गिरकर लगभग 2,855.15 रुपये पर ट्रेड करने लगे। यह स्टॉक हाल के दिनों में पहले से ही दबाव में था और फरवरी 2025 में अपने 52-सप्ताह के निचले स्तर 2,902.85 रुपये तक पहुँच गया था। पिछले एक साल में यह 36% तक नीचे आ चुका है, और अडानी की एंट्री ने इस गिरावट को और तेज कर दिया।
पॉलीकैब इंडिया के शेयर 9% टूटकर लगभग 4,978.85 रुपये पर पहुँच गए, जो इस सेगमेंट की सबसे बड़ी कंपनी के लिए एक बड़ा झटका है। हवेल्स इंडिया के शेयरों में 5% से ज्यादा की कमी आई और यह 1,472 रुपये पर ट्रेड करने लगे। फिनोलेक्स केबल्स और आरआर केबल जैसे अन्य खिलाड़ियों के शेयरों में भी 4% से 9% की गिरावट देखी गई। दूसरी ओर, अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों में तेजी आई और यह सुबह के सत्र में 2,326 रुपये पर ट्रेड कर रहे थे, जो निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है।
क्यों पड़ी यह मार?
इस भारी गिरावट के पीछे कई कारण हैं। पहला, अडानी ग्रुप और बिरला ग्रुप जैसे बड़े औद्योगिक समूहों की एंट्री से मौजूदा कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी पर खतरा मंडरा रहा है। केईआई, पॉलीकैब और हवेल्स जैसी कंपनियाँ इस सेगमेंट में दशकों से स्थापित हैं और अपनी मजबूत स्थिति बनाए हुए थीं। लेकिन अब उन्हें न केवल कीमतों में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा, बल्कि उत्पादन क्षमता, सप्लाई चेन और मार्केटिंग में भी इन बड़े खिलाड़ियों से टक्कर लेनी होगी।
दूसरा, कच्चे माल की बढ़ती कीमतें इस सेगमेंट के लिए पहले से ही चुनौती बनी हुई हैं। कॉपर और एल्यूमिनियम जैसे धातुओं की लागत में हालिया उछाल ने कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन पर दबाव डाला है। ऐसे में, अडानी जैसे समूह, जो अपनी कॉपर रिफाइनिंग यूनिट के जरिए कच्चे माल की लागत को नियंत्रित कर सकते हैं, मौजूदा कंपनियों के लिए खतरा बन सकते हैं।
तीसरा, निवेशकों में यह डर है कि अडानी और बिरला जैसे बड़े समूह अपनी वित्तीय ताकत और संसाधनों का इस्तेमाल कर बाजार में तेजी से पैर जमा सकते हैं। इससे मौजूदा कंपनियों की ग्रोथ और मार्केट शेयर पर लंबे समय तक असर पड़ सकता है।
अडानी की रणनीति: एक नया खेल
अडानी ग्रुप का यह कदम उनकी व्यापक विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा है। समूह पहले से ही बिजली, बंदरगाह, रिन्यूएबल एनर्जी और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में अपनी मजबूत मौजूदगी रखता है। केबल्स और वायर्स सेगमेंट में एंट्री उनके कॉपर बिजनेस को बढ़ाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में अपनी पकड़ को और मजबूत करने की दिशा में एक तार्किक कदम है। कच्छ कॉपर के पास पहले से ही कॉपर प्रोसेसिंग की क्षमता है, जो इस नई कंपनी के लिए कच्चे माल की आपूर्ति को आसान और सस्ता बना सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत में बढ़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, रियल एस्टेट डेवलपमेंट, और इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग के चलते केबल्स और वायर्स की जरूरत तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में अडानी का यह कदम सही समय पर उठाया गया हो सकता है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अडानी की यह पहल न केवल घरेलू बाजार को टारगेट कर रही है, बल्कि निर्यात के अवसरों को भी देख रही है।
पिछले अनुभव और बाजार का इतिहास
यह पहली बार नहीं है जब किसी बड़े समूह की एंट्री ने इस सेगमेंट में हलचल मचाई हो। पिछले महीने जब अल्ट्राटेक सीमेंट ने गुजरात के भरूच में 1,800 करोड़ रुपये की लागत से एक नया प्लांट लगाने की घोषणा की थी, तब भी पॉलीकैब और केईआई के शेयरों में 20% तक की गिरावट देखी गई थी। उस समय बाजार को उम्मीद थी कि यह एक अस्थायी झटका होगा, लेकिन अडानी की एंट्री ने इस सेक्टर के लिए चुनौतियों को और गहरा कर दिया है।
पिछले एक महीने में पॉलीकैब के शेयर 6% नीचे आए हैं, जबकि अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों में 6.3% की बढ़ोतरी हुई है। केईआई इंडस्ट्रीज का प्रदर्शन पिछले एक साल में सबसे खराब रहा है, जिसमें 36% की गिरावट दर्ज की गई। यह साफ है कि निवेशक इस सेगमेंट में बदलते समीकरणों को लेकर चिंतित हैं।
प्रतिस्पर्धा का नया दौर
केबल्स और वायर्स उद्योग में अब एक नया प्रतिस्पर्धी दौर शुरू होने वाला है। अडानी और बिरला जैसे बड़े खिलाड़ियों की मौजूदगी से कीमतों में कमी, उत्पादों में नवाचार और बाजार विस्तार की संभावना बढ़ सकती है। लेकिन मौजूदा कंपनियों के लिए यह एक कठिन समय होगा। पॉलीकैब और हवेल्स जैसे ब्रांड्स अपने मजबूत डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क, ब्रांड वैल्यू और क्वालिटी प्रोडक्ट्स के दम पर अपनी स्थिति बचाने की कोशिश करेंगे। वहीं, अडानी की वित्तीय ताकत और संसाधन उन्हें तेजी से बाजार में जगह बनाने में मदद कर सकते हैं।
निवेशकों के लिए सलाह
विश्लेषकों का कहना है कि अभी इस सेगमेंट में निवेश करने से पहले सतर्कता बरतनी चाहिए। एलारा कैपिटल के उपाध्यक्ष हर्षित कपाड़िया ने हाल ही में CNBC-TV18 को बताया था कि वह इस सेक्टर में अभी सावधानी बरतेंगे और अल्ट्राटेक और अडानी की रणनीति पूरी तरह सामने आने के बाद ही कोई फैसला लेंगे। शॉर्ट-टर्म में उतार-चढ़ाव की संभावना है, लेकिन लॉन्ग-टर्म में इस सेगमेंट की ग्रोथ की संभावना मजबूत दिखती है, खासकर भारत में बढ़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर और इलेक्ट्रिफिकेशन प्रोजेक्ट्स को देखते हुए।
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