कैप्टन मनोज पांडे (Capt. Manoj Pandey): माँ भारती का वो सपूत जिसका जन्म ही युद्ध भूमि में अदम्य साहस और सर्वोच्च वीरता के साथ बलिदान की अमर गाथा लिखने के लिए हुआ था..

If death comes before I prove my blood I swear, I will kill death
अगर मेरे खून को साबित करने से पहले मृत्यु आ जाए तो मैं कसम खाता हूं, मैं मृत्यु को मार डालूंगा

-कैप्टन मनोज पांडे (Capt. Manoj Pandey)

ये शब्द कैप्टन मनोज पांडे (Capt. Manoj Pandey) जो भारतीय सेना के प्रतिष्ठित अधिकारी थे ने कहे थे और अपने शब्दों पर खरा उतरते हुए उन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में अपने अद्वितीय साहस और वीरता का ऐसा प्रदर्शन किया जो सदियों तक हर भारतवासी के लिए प्रेरणा बना रहेगा। वे भारतीय सेना की 1/11 गोरखा राइफल्स में कार्यरत थे और उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परम वीर चक्र से नवाजा गया।

प्रारंभिक जीवन

मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ और रानीखेत में हुई। बचपन से ही सेना में शामिल होने का सपना रखने वाले मनोज पांडे ने अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की।

सैन्य करियर और कारगिल युद्ध

मनोज पांडे ने 1997 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उन्हें 1/11 गोरखा राइफल्स में कमीशन मिला। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, कैप्टन पांडे की बटालियन को महत्वपूर्ण खालुबार चोटी को पुनः प्राप्त करने का कार्य सौंपा गया था। उन्होंने अद्वितीय साहस और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया और अपने सैनिकों के साथ अग्रिम पंक्ति में लड़ते हुए कई दुश्मनों को मार गिराया।

शौर्य का प्रदर्शन

खालुबार चोटी पर कब्जा करते समय, कैप्टन मनोज पांडे को कई गोलियां लगीं, फिर भी उन्होंने अपने मिशन को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और दुश्मन के ठिकानों पर सफलतापूर्वक हमला किया, जिससे भारतीय सेना को महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त मिली।

परम वीर चक्र से सम्मानित

उनकी वीरता और बलिदान को मान्यता देते हुए, उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें भारतीय सेना में उनके अद्वितीय योगदान और बलिदान के लिए प्रदान किया गया था।

अपने सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) साक्षात्कार के दौरान, “आप सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं?” के सवाल पर, उनका तत्काल उत्तर था “मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं”। अपने शब्दों के अनुरूप कैप्टन मनोज कुमार पांडे ने मरणोपरांत देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान जीता।

विरासत

कैप्टन मनोज पांडे की वीरता और बलिदान ने उन्हें भारतीय जनता के दिलों में अमर कर दिया है। उनकी स्मृति में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक उद्यान का नाम उनके नाम पर रखा गया है। इसके अलावा, भारतीय सेना और अन्य संगठन उनकी वीरता को विभिन्न समारोहों में सम्मानित करते हैं।

प्रेरणा और आदर्श

कैप्टन पांडे का जीवन देशभक्ति, साहस और सेवा का प्रतीक है। उनका उदाहरण न केवल सैनिकों के लिए बल्कि आम जनता के लिए भी प्रेरणास्रोत है। उनकी वीरता की कहानियाँ आज भी युवाओं को भारतीय सेना में शामिल होने और देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करती हैं। कैप्टन मनोज पांडे का जीवन और बलिदान भारतीय सेना के साहस और समर्पण का प्रतीक है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

हमें गर्व है ऐसे वीर बलिदानी पर जिसने भारत माँ के चरणों मैं अपने प्राण न्योछावर कर दिए पर दुश्मन को सफल नहीं होने दिया। आज जाट बुलेटिन परिवार के सभी सदस्य कारगिल विजय दिवस पर इस अमर वीर बलिदानी को और कारगिल मैं शहीद हुए सभी वीरों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


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