उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुंबई में 11-07-2014 को महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करते हुए चिंता व्यक्त की और कहा कि “हाल के संसद सत्र में जिस तरह का आचरण देखा गया वह वास्तव में दुखद है, क्योंकि यह हमारे विधायी प्रवचन में महत्वपूर्ण नैतिक क्षरण को प्रदर्शित करता है।” उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, “बुद्धि, हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष, जो कभी विधानमंडलों में प्रवचन का अमृत थे, हमसे दूर होते जा रहे हैं। अब हम अक्सर टकराव और प्रतिकूल स्थिति देखते हैं, लोकतांत्रिक राजनीति एक नई गिरावट देख रही है और तनाव तथा खिंचाव का माहौल है।
उपराष्ट्रपति महोदय ने टिप्पणी की कि संसद के कामकाज को रोककर राजनीति को हथियार बनाना हमारी राजनीति के लिए गंभीर परिणाम देने वाला है, संसद के कामकाज को रोककर राजनीति को हथियार बनाना भविष्य के लिए गंभीर परिणाम देने वाला है।
उन्होंने ऐसे विस्फोटक और चिंताजनक परिदृश्य में सभी स्तरों पर, विशेष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि नैतिकता प्राचीन काल से भारत में सार्वजनिक जीवन की पहचान रही है। नैतिकता और सदाचार मानव व्यवहार का अमृत और सार है और संसदीय लोकतंत्र के लिए सर्वोत्कृष्ट है।
उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि राष्ट्र तब प्रगति करता है जब उसके तीन अंग- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपने-अपने क्षेत्र के भीतर प्रदर्शन करते हैं एक संस्था द्वारा दूसरी संस्था के क्षेत्र में घुसपैठ संभावित रूप से परेशान कर सकती है।
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