नई दिल्ली: Finance Minister निर्मला सीतारमण ने आज राज्यसभा में जवाब देते हुए जानकारी दी कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने पिछले कुछ वर्षों में ₹2.27 लाख करोड़ की राशि उन ऋणों से वसूली है, जिन्हें पहले राइट-ऑफ कर दिया गया था। यह जानकारी संसद में एक प्रश्न के उत्तर में दी गई, जिसमें उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और बैंकों की वित्तीय स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण बिंदु रखे।
राइट-ऑफ लोन क्या होता है?
जब कोई बैंक यह मान लेता है कि कोई ऋण (loan) वापस नहीं मिलेगा, तो उसे “राइट-ऑफ” कर दिया जाता है। इसका मतलब यह नहीं होता कि बैंक उस राशि की वसूली नहीं कर सकता, बल्कि यह एक बैलेंस शीट सुधारने की प्रक्रिया होती है, जिससे बैंक की वित्तीय स्थिति बेहतर दिखाई देती है।
कैसे हुई इतनी बड़ी वसूली?
वित्त मंत्री ने बताया कि सरकार द्वारा उठाए गए कई सख्त कदमों की वजह से यह वसूली संभव हो सकी है। इनमें शामिल हैं:
- सख्त नियमों का पालन – भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और सरकार ने बैंकों को सख्ती से नियमों का पालन करने और डिफॉल्टर्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
- इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) 2016 – इस कानून के तहत कई बड़ी कंपनियों को अपने कर्ज चुकाने के लिए मजबूर किया गया।
- बैंकिंग सुधार और निगरानी – बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने लगातार उनकी निगरानी की और नीतिगत बदलाव किए।
- डिफॉल्टर कंपनियों पर कार्रवाई – उन कंपनियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया था।
वित्त मंत्री (Finance Minister) का बयान
Finance Minister निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया कि सरकार और बैंकिंग प्रणाली ने मिलकर इस प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी बनाया है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति अब पहले की तुलना में बेहतर हुई है और वे अब ज्यादा मजबूत और आत्मनिर्भर हो रहे हैं।
सरकारी प्रयासों का असर
- पिछले कुछ वर्षों में बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार हुआ है।
- गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) में गिरावट आई है।
- बैंकों की कुल आय और लाभ बढ़ा है।
- कर्ज वसूली की प्रक्रिया को और तेज किया गया है।
वित्त मंत्री ने बताया कि सरकारी नीतियों और सख्त कदमों की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बड़ी मात्रा में ऋणों की वसूली की है, जिससे बैंकिंग सेक्टर मजबूत हुआ है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है और दर्शाता है कि सरकार वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
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