स्वामी प्रेमानंद जी महाराज, ब्रज के परम आदरणीय संत, अपने मधुर वाणी, तर्कशील शैली और सच्चे मार्गदर्शन के लिए जाने जाते हैं। उनके प्रवचन जीवन के हर पहलू को छूते हैं – विशेषकर तब, जब कोई भक्त गहराई से उलझा होता है। श्री प्रेमानंद जी महाराज की वाणी और प्रवचन हजारों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाते हैं। उनका केंद्र बिंदु है शुद्ध भक्ति, नाम जप, और सदाचारपूर्ण जीवन। वृंदावन में स्थित उनका आश्रम एक आध्यात्मिक तीर्थ बन चुका है, जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मार्गदर्शन के लिए आते हैं।
एक भक्त के साथ हुई इस संवाद में महाराज जी ने मदिरापान जैसी घातक आदत, उसके दुष्परिणाम और भगवत्प्राप्ति के लिए आवश्यक आत्मशुद्धि पर गहन प्रकाश डाला है। जिसका प्रसारण उनके यूट्यूब चैनल Bhajan Marg पर 21 April 2025 को किया गया। इस लेख मैं हम आपको महाराज जी और उनकी भक्त के बीच हुए संवाद का सारांश बताएँगे।
भक्त का प्रश्न:
राधे-राधे महाराज जी, पिछले 5 साल से शराब की लत लग गई और अभी छोड़ नहीं पा रही, पिछले 2 साल से सत्संग कीर्तन सुन रही हूँ और प्रभु को पाना चाहती हूँ ?
प्रेमानंद जी महाराज का उत्तर और उसका सारांश
1. मदिरापान: कलयुग का महापाप
(क) शास्त्रों के अनुसार मदिरापान की गंभीरता
प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि शराब पीना कलयुग के पाँच प्रमुख पापों में से एक है, जिसे “मदिरापान” कहा गया है। अन्य चार पाप हैं:
- स्त्री गमन (व्यभिचार)
- जुआ खेलना
- हिंसा करना
- मांसाहार
“ये पाँचों पाप मनुष्य को भगवान से कोसों दूर कर देते हैं।”
(ख) मदिरापान का दुष्प्रभाव
- आध्यात्मिक पतन: शराब पीने वाला व्यक्ति कभी भी भगवान को नहीं पा सकता।
- नैतिक अध:पतन: मदिरा से मनुष्य की बुद्धि नष्ट होती है और वह अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाता है।
- आर्थिक नुकसान: रोजाना शराब पर खर्च किया गया धन गरीबों की सेवा में लगाया जा सकता है।
महाराज जी का दृष्टांत:
*”गंगा में स्नान करके गटर में कूदने जैसा है। रोज भजन-कीर्तन करो, पर शराब पीते रहो तो सब व्यर्थ है।”*
2. भगवत्प्राप्ति के लिए पवित्र आचरण
(क) नाम जप और आचरण की शुद्धता
महाराज जी ने समझाया कि केवल “राधे-राधे” जपने से कुछ नहीं होगा, यदि आचरण अशुद्ध है।
- उदाहरण: घर को पोछकर फिर उसी पर धूल फेंकने जैसा है।
- सीख: “जब तक मदिरापान और अन्य दुर्गुण नहीं छोड़ोगे, भगवान की कृपा नहीं मिलेगी।”
(ख) सात्विक जीवन का महत्व
- शुद्ध आहार: मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज आदि तामसिक भोजन से दूर रहें।
- सत्संग का सहारा: संतों का सान्निध्य और भक्ति-भाव से मन शुद्ध होता है।
3. संकल्प की शक्ति: “आज से शराब नहीं पियूँगी!”
महाराज जी ने भक्तिन से एक दृढ़ संकल्प करवाया:
- वचनबद्धता: “आज के बाद शराब नहीं पियूँगी!”
- भगवान पर विश्वास: “यदि तुम ठान लो, तो भगवान तुम्हें शक्ति देंगे।”
- चेतावनी: “यदि संकल्प तोड़ा तो यह महापाप होगा, खासकर वृंदावन जैसे पावन स्थान पर।”
महाराज जी का आश्वासन:
“यदि तुम सच्चे मन से शराब छोड़ दो और नाम जपो, तो भगवान की कृपा से यह आदत छूट जाएगी।”
4. व्यावहारिक सुझाव: आदत कैसे छोड़ें?
(क) घृणा उत्पन्न करें
- मदिरापान को एक “गंदी आदत” समझें, न कि मजा।
- इसके दुष्परिणामों पर विचार करें: स्वास्थ्य, पैसा और आत्मा का नुकसान।
(ख) धन का सदुपयोग
- “रोज शराब पर 100 रुपये खर्च करते हो? एक महीने में 3000 रुपये बचेंगे, जो किसी गरीब की सेवा में लगा सकते हो।”
(ग) नाम जप और भक्ति
- “राधे नाम” का निरंतर जप करें।
- सत्संग सुनें और भगवान के प्रति समर्पण बढ़ाएँ।
प्रेमानंद जी महाराज की शिक्षाएँ:
- मदिरापान और अन्य पापों का त्याग करो।
- आचरण, आहार और विचार शुद्ध रखो।
- संकल्प लो, भगवान पर भरोसा रखो।
- सेवा और सत्संग को जीवन का अंग बनाओ।
“जब तक गंदी आदतें नहीं छोड़ोगे, भगवान की प्राप्ति नहीं होगी। पहले स्वयं को पवित्र करो, फिर भक्ति फलित होगी।”
आप Premanand Ji Maharaj का पूरा प्रवचन नीचे देख सकते हैं:
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